________________
तिर्यंच योनि के दुःख ****************************************************************
तिर्यंच योनि के दुःख किं ते? सीड़ण्ह-तण्हा-खुह-वेयण-अप्पईकार-अडवि-जम्मणणिच्चभउव्विग्गवास-जग्गण-वह-बंधण-ताडण-अंकण-णिवायण-अट्टिभंजणणासाभेयप्पहारदूमण-छविच्छेयण-अभिओग-पावण-कसंकुसार-णिवाय-दमणाणिवाहणाणि य।
शब्दार्थ - किं ते - वे कौन से दुःख हैं ?, सीउण्ह - शीत उष्ण-सर्दी-गर्मी, तण्हा - प्यास, खुह - क्षुधा, वेयण - वेदना, अप्पईकार - प्रतिकार रहित, अडविजम्मण - अटवी में जन्म होना, णिच्च - सदैव, भउव्विग्गवास - भय और उद्वेगपूर्ण स्थान में रहना, जग्गण - जागते रहना, वहबंधणवध और बन्धन, ताडणअंकण- मार-पीट और अंकन-तपाये हुए लोहे से डाम लगाकर चिह्न बनाना, -णिवायण - खड्डे आदि में गिरा देना, अद्विभंजण - हड्डी तोड़ देना, णासाभेय - नासिका में छेद करना, पहार - लाठी आदि से प्रहार, दूमण - संतप्त करना, छविच्छेयण - अवयवों को काट देना, अभिओग पावण- बलात्कार पर्वक काम में जोडना, कसंकसार णिवाय दमणाणि- चाबक, अंकश और आराडंडे में लगी हई शल-के प्रहार से दमन करना, वाहणाणि - भार वहन कराना।
विवेचन - तिर्यंच योनि के दुःखों को जानने के लिए शिष्य गुरुदेव से पूछता है - 'भगवन्! तिर्यंच-योनि में किस बात का दुःख है?' गुरुदेव बतलाते हैं - हे शिष्य! तिर्यंच-योनि में पहला दुःख तो सर्दी-गर्मी का है। वहाँ उनके रहने के लिए सुरक्षित स्थान-घर आदि नहीं है। इसलिए वे जीव सर्दी-गर्मी और वर्षा के दुःख से पीड़ित होते ही रहते हैं।
क्षुधा-पिपासा का दुःख-जब गर्मी के दिन होते हैं, तो वन में भी कोसों दूर तक पानी नहीं मिलता। बिचारे पशु प्यास के दुःख से दुःखी होकर पानी के लिए भटकते ही रहते हैं। कई भटकते-. भटकते ही मर जाते हैं। किसी को उस जलाशय पर पानी पीने के लिए आया हुआ सिंह जैसा बलवान् पशु मारकर खा जाता है और कई रोगी, वृद्ध एवं अशक्त पशु जलाशय तक नहीं पहुंच पाने के कारण यों ही प्यास का भयंकर दुःख सहते हुए आर्त्तध्यान पूर्वक मर जाते हैं। ___गाय, बैल, भैंस, भैसा आदि पालतु पशु जब अति वृद्ध हो जाते हैं और किसी काम के योग्य नहीं रहते हैं, तो उनकी साल-संभाल भी कम हो जाती है। कई स्वार्थी मनुष्य उन्हें घर से निकाल देते हैं। वे इधर-उधर गलियों में गिर पड़ते हैं। उनसे स्वयं उठा नहीं जाता। वे प्यास के दुःख से पीड़ित होते रहते हैं। जब पानी की बहुत तंगी होती है, तो वैसे समय में उन मूक बेकार पशुओं को कोई नहीं पूछता। उनके सामने पनिहारी पानी भरकर आती है, उसके देखकर उनके मन में आशा उत्पन्न होती है कि यह मुझे पानी पिलाएगी। उनका मन शीघ्र ही भर-पेट पानी पीने के लिए तालावेली करता है, किन्तु जब वह पनिहारी उनके सामने से होकर निकल जाती है, तो उनके दुःख का पार नहीं रहता। वे हताश प्राणी बहुत दुःख वेदते हैं। उसी प्रकार भूख का दुःख भी है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org