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बेइंद्रियों के दुःख
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******************* अट्ठहिं अणूणएहिं तेइंदियाणं तहिं तहिं चेव जम्मणमरणाणि अणुहवंता कालं संखेज्जगं भमंति रइयसमाणतिव्वदुक्खा फरिस-रसण-घाण-संपउत्ता।
शब्दार्थ - तहेव - इसी प्रकार, तेइंदिएसु - तेइन्द्रिय प्राणियों की, कुंथुपिप्पीलियाअंधिकादिएसुकुंथु-पिप्पीलिका-चींटी-कीड़ी, अंधिका-दीमक आदि, जाइकुल - जाति कुल, कोडिसयसहस्सेहि अट्ठहिं - कुल कोटियाँ आठ लाख, अणूणएहिं - अन्यून-पूरी, तहिं तहिं चेव - उन सब में, जम्मणमरणाणि - जन्म-मरण, अणुहवंता - अनुभव करते हुए, कालं संखेजगं भमंति - संख्यात काल तक भ्रमण करते हैं, जेरइयसमाण - नैरयिकों के समान, तिव्वदुक्खा - तीव्र दुःख, फरिस-रसण-घाणस्पर्श, रसन, घ्राण, संपउत्ता - युक्त।
___ भावार्थ - इसी प्रकार कुंथु, चींटी, दीमक आदि तेइंद्रिय प्राणियों की जाति की कुल-कोटियां पूरी आठ लाख हैं। वे बार-बार उन्हीं में जन्म-मरण करते हुए और नैरयिक के समान तीव्र दुःखों का अनुभव करते हुए संख्यात काल तक उसी में भ्रमण करते रहते हैं। वे जीव, स्पर्श, रसन और घ्राण इन्द्रिय से युक्त हैं।
: बेइंद्रियों के दुःख गंडूलय-जलूय-किमिय-चंदणगमाइएसु य जाइकुलकोडिसय-सहस्सेहिं सत्तहिं अणूणएहिं बेइंदियाणं तहिं तहिं चेव जम्मणमरणाणि अणुहवंता कालं संखेजगं भमंति णेरइयसमाण-तिव्वदुक्खा फरिस-रसण-संपउत्ता।
शब्दार्थ - गंडूलय - गंडूल-गिडोला, जलूय - जोंक, किमिय - कृमि-छोटे कीड़े, चंदणगमाइएसु- चन्दनक-अक्ष आदि, जाइकुलकोडि - जाति की कुलकोटियाँ, सयसहस्सेहिं सत्तहिंसात लाख, अणूणएहिं - अन्यून-पूरी, बेइंदियाणं - बेइंद्रिय की, तहिं तहिं चेव - उन्हीं में, जम्मणमरणाणि - जन्म-मरण, अणुहवंता - अनुभव करते हुए, कालं संखेज्जगं - संख्यात काल, भमंति - भ्रमण करते हैं, णेरइयसमाणतिव्वदुक्खा - नैरयिक के समान तीव्र दुःख, फरिसरसणसंपउत्तास्पर्श और रसना युक्त।
भावार्थ - गंडूलक, जोंक, कृमि एवं चन्दनक आदि बेइंद्रिय जीवों की जाति की कुल कोटियाँ पूरी सात लाख हैं। वे उन्हीं जाति-कुलों में जन्म-मरण करते और नारक जीवों के समान तीव्र दुःखों का अनुभव करते हुए संख्यात काल तक उन्हीं में भ्रमण करते रहते हैं। वे स्पर्श और रसना, इन दोनों इन्द्रियों से युक्त हैं।
- एकेन्द्रिय जीवों के दुःख पत्ता एगिदियत्तणं वि य पुढवि-जल-जलण-मारुय-वणप्फइ सुहुम-बायरं च
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