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नारकों की विविध पीड़ाएं
वालों के समान ये नरकपाल भी क्रूर परिणामी होते हैं। ये एकान्त मिथ्यादृष्टि होते हैं। कर्मों के उदय से उन्हें ऐसे कार्यों में ही आनन्द आता है। -
नारकों की विविध पीड़ाएं
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किं ते? असिवण-दब्भवण - जंतपत्थर - सूइतल-क्खार वावि-कल कलंत वेयरणि- कलंब - वालुया - जलियगुहणिरुंभणं उसिणोसिण-कंटइल्ल-दुग्गम-रहजोयण तत्तलोहमग्गगमण - वाहणाणि इमेहिं विविहेहिं आउहेहिं ।
शब्दार्थ - किं ते उन नारकों की यातनाएं कैसी हैं ? असिवण - असि-तलवार के समान पत्तों वाले वृक्षों का वन, दब्भवण दर्भवन, जंतपत्थर पत्थर के यंत्र, सूइतल सूई की नोक से, खारवावि खारे पानी की बावड़ी, कलकलंत वेयरणि - उबलते हुए शीशे से बहती वैतरणी, कलंबवालुया - रक्त वर्ण की तप्त रेत, जलियगुहणिरुंभणं - जलती गुफा में बन्द करके, उसिणोसिण कंटइल्ल दुग्गम रहजोयण - अत्यन्त उष्ण और कांटों से परिपूर्ण दुर्गम मार्ग में, रथ में जोत कर चलाते हैं, लोहमग्गगमण वाहणाणि - वाहन में जोतकर उष्ण लोहमय मार्ग में चलाया जाता है, इमेहिं - इस प्रकार, विविहेर्हि - विविध प्रकार से, आउहेहिं आयुधों से मारे जाते हैं।
भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि 'उन नारकों को कैसी यातनाएं दी जाती हैं ?" गुरुदेव कहते हैं कि वे नरकपाल उन नारकों को तलवार की धार के समान तीखे पत्र वाले वृक्षों के वन में चलाते. हैं। जिसकी नोक चूभती है ऐसे दर्भ के वन में चलाते हैं । पत्थर के यंत्र (कोल्हू) में डालकर पीसे जाते हैं, सूई की नोक के समान तीखे कांटों के समान स्पर्श वाली भूमि पर चलाया जाता है। क्षार युक्त • पानी की बावड़ी में डाल दिया जाता है। जिसमें रांगा या सीसा जैसा उबलता हुआ पानी बह रहा हैऐसा वैतरणी नदी में डाल दिया जाता है। कदम्ब पुष्प के समान अग्नि जैसी तप्त रक्त रेत पर चलाया जाता है। जलती हुई गुफा में बन्द करके रोंधा जाता है। अत्यन्त उष्ण एवं तीक्ष्ण कंटकों से परिपूर्ण दुर्गम मार्ग में रथ में बैल के समान जोतकर चलाया जाता है। गर्म लोहमय मार्ग में वाहनों में जोत कर चलाया जाता है। यों विविध प्रकार के शस्त्रों से उन्हें मारा जाता है।
विवेचन- पाप के कटु फल को बताने वाला यह वर्णन शब्दों में तो कम ही है। वास्तविक दुःख तो इससे भी अनन्त गुण है। ऋषीश्वर मृगापुत्र जी ने कहा है कि
"जारिसा माणुसे लोए, ताया दीसंति वेयणा ।
इत्तो अनंत-गुणिया, णरएसु दुक्खवेयणा ।"
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उत्तराध्ययन १९-४
• मनुष्य लोक में जो वेदना दिखाई देती है, उससे अनन्त गुण दुःखद वेदना नरक में है। कई पठित तर्कवादी, नारकों को होने वाली ऐसी वेदना पर अविश्वासी बनते हुए स्वच्छन्द प्रचार करते हैं । किन्तु उनकी यह चेष्टा स्व-पर अहितकारिणी है। यदि हम तटस्थ होकर सोचें, तो इस प्रकार
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