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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १
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एक भयंकर डाकू अपने जीवन में सैकड़ों निरपराध मनुष्यों को मार डालता है। गाँव के गांव जलाकर भस्म कर देता है। स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों को निराधार करके दुःख एवं क्लेश की भट्टी में झोंक देता है। ऐसा भयंकर पापी यदि पकड़ा भी जाये और उसे मृत्यु - दण्ड भी मिले, तो उसके महान् पापों और हत्याओं के आगे वह मृत्यु-दण्ड किस गिनती में है ? उसे अपने पापों का यथोचित फल भोगने का कोई स्थान होना ही चाहिए और वह स्थान नरक - निगोद ही है ।
एक युद्धखोर सत्ताधारी अपनी कलुषित महत्त्वाकांक्षा से दूसरों की भूमि और सम्पत्ति हड़पने के लिए, अन्य पडोसी राज्यों को अपने आधीन बनाने के लिए युद्ध कर लाखों मनुष्यों को मरवाता है। दूसरे राज्य की प्रजा को बरबाद करता है, लूट मचाकर हजारों डाकुओं से भी अधिक पाप करता है। जलाशयों में विष मिलाकर और बम वर्षा कर तथा परमाणु बम गिराकर लाखों मनुष्यों, असंख्य तिर्यंचों को मार देता है। ऐसे भयंकर हत्यारे का घोरतम पाप क्या व्यर्थ ही चला जाएगा? नहीं, उसका परिणाम उसे अवश्य भुगतना पड़ेगा और उस घोर पाप के फल- भोग का स्थान उपरोक्त सूत्र में वर्णित नरक ही हो सकता है।
एक मनुष्य चाहे जितना शक्तिशाली हो ( भले ही देव या इन्द्र ही क्यों न हो ) हजारों मनुष्यों के घातक एक महानतम् पापी मनुष्य को उसके पाप का पूरा दण्ड, उस एक ही जन्म में नहीं दे सकता । उसके पाप का यथोचित दण्ड तो उसके अशुभ कर्म ही दे सकते हैं और वह भी एक नहीं अनेक जन्म-जन्मान्तर में । कई ऐसे शक्तिशाली उच्चाधिकारी महापापी होते हैं कि जिन्हें अपने महापापों का फल इस मनुष्य भव में तो मिलता ही नहीं । वे जीवनपर्यन्त महाराजाधिराज (ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीवत् ) राष्ट्रनायक (हिटलर, मुसोलिनी, तोजो जैसे) या कालसौरिक कसाई जैसे रहकर मर जाते हैं । उनके महापापों का फल भवान्तर में ही मिलता है और इसके लिए उपयुक्त स्थान नरक ही है।
जिस प्रकार भयंकर अपराधी को काले पानी की सजा देकर स्थानान्तर किया जाता है और अंडमान साइबेरिया आदि प्रतिकूल परिस्थिति वाले क्षेत्र में भेजकर अत्यधिक दुःखद स्थान पर रखा जाता है, वैसे ही कर्म-फल भोगने के लिए नरक स्थान हैं। ऐसे स्थान पर मानव की अपेक्षा असंख्य गुण आयु प्राप्त कर, जीव भयंकरतम दुःख भोगता है।
उपरोक्त संक्षिप्त विचार से नरक- -भूमियों और उनमें होने वाले भयंकरतम दुःखों को समझना
सरल है।
उष्णता - सभी नरकों में उष्णता नहीं है। प्रथम से तीसरी नरक तक उष्णता ही है। चौथी और पांचवीं में उष्णता और शीतलता है। छठी व सातवीं में शीतलता ही है । (प्रज्ञापनासूत्र पद ९) जमपुरिस - यमपुरुष का अर्थ 'परमाधामी' देव है। ये देव भवनपति जाति के हैं। तीसरे, नरक तक ये देव जाते हैं और नैरयिकों को अनेक प्रकार के दुःख देते हैं। यह उनका मनोरंजन है।
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