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नैरयिकों का बीभत्स शरीर
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नैरयिकों का बीभत्स शरीर - तत्थ य अंतोमुहुत्तलद्धिभवपच्चएणं णिवत्तंति उ ते सरीरं हुंडं बीभच्छदरिसणिजं बीहणगं अट्ठि-हारु-णह-रोम-वज्जियं असुभगं दुक्खविसहं तओ य पजत्तिमुवगया, इंदिएहिं पंचहिं वेएंति असुहाए वेयणाए उजल-बल-विउल-क्कखड-खर-फरुसपयंड-घोर-बीहणगदारुणाए।
शब्दार्थ - तत्थ य - उन नरकों में, ते - वे पापी जीव, अंतोमुहुत्तलद्धिभवपच्चएणं - उत्पन्न होते ही अन्तर्मुहूर्त्तकाल में वैक्रिय-लब्धि और नरक भव से, सरीरं - शरीर, णिव्वत्तंति - निर्माण कर लेते हैं, उनका वह शरीर, हुंडं - हुंडक संस्थान वाला, बीभच्छदरिसणिजं - बीभत्स दर्शनीय-देखने में विकृतघृणित, बीहणगं - भयानक, अट्ठि-हारु-णह-रोम-वज्जियं - हड्डियों, नसों, नाखुन और रोम से रहित; असुभगं - अशुभ-खराब, दुखविसहं - दुःखों को सहने वाला, तओ - उसके बाद, पजत्तिमुवगया - पर्याप्ति को प्राप्त होकर, पंचहिं - पांचों, इंदिएहिं - इन्द्रियों से, वेएंति - दुःख का वेदन करते हैं, असुहाए - अशुभ, वेयणाए - वेदना, उज्जल - अत्यन्त तीव्र, बल - भारी-कठोर अथवा जोरदार, विउल - विपुल-अत्यन्त, कक्खड - कर्कश, खर - कठोर, फरुस - असह्य-प्रगाढ़, पयंड - प्रचण्ड, घोर - अत्यन्त, बीहणग - भयंकर, दारुणाए - दारुण-विकट, घोर। - भावार्थ - वे पापी जीव उन नरकावासों में उत्पन्न होते ही और अन्तर्मुहूर्त में ही वैक्रिय-लब्धि
और नारक भव के योग्य शरीर निर्माण कर लेते हैं। उनका वह शरीरं हुंडक संस्थान वाला, दिखने में बीभत्स एवं भयानक होता है। उनके शरीर में हड्डियाँ, नसें, नाखुन और रोम नहीं होते, उनका शरीर अशुभ और भयंकर दुःखों को सहन करने योग्य होता है। पांचों पर्याप्ति से पर्याप्त होने के बाद वे पांचों इन्द्रियों के द्वारा दुःख का वेदन करते हैं। अशुभ, अत्यन्त तीव्र, असह्य भयंकर एवं घोरतम वेदना का वेदन करते हैं। ... .. विवेचन - नरक पाप का फल भोगने का प्रमुख स्थान है। वहाँ उत्पन्न होने वाले पापी जीवों का शरीर भी अत्यन्त अशुभ, बीभत्स, घृणित एवं भयानक होता है और उत्पन्न होते ही दुःखमय वेदना प्रारम्भ हो जाती है।
हुंडक संस्थान - शरीर की आकृति विशेष। छह प्रकार की आकृति में हुंडक आकृति सबसे निकृष्ट एवं विविध प्रकार की होती है। इसमें बेडोलता, भद्दापन और अशोभनीयता होती है।
. हड्डी-रक्त-मांसादि रहित - मनुष्यों और पशुओं के शरीर में रक्त, मांस और हड्डी आदि होते हैं, किन्तु नारकों के शरीर में रक्तादि नहीं होते। उनका शरीर बहुत ही अशुभ-बुरी सामग्री से बना होता है।
- पांच पर्याप्ति - सन्नी पंचेन्द्रिय जीवों के कुल छह पर्याप्ति होती है। यथा - १. आहार पर्याप्ति २. शरीर पर्याप्ति ३. इन्द्रिय पर्याप्ति ४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ५. भाषा पर्याप्ति और ६. मनः पर्याप्ति।
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