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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १ **************************************************************** दिति कलसेण अंजलीसु दट्ठण य तं पवेवियंगोवंगा अंसुपगलंतप्पुयच्छा छिण्णा तण्हाइयम्ह कलुणाणि जंपमाणा विप्रेक्खंता दिसोदिसिं अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविप्पहूणा विपलायंति य मिया इव वेगेण भयुबिग्गा। ...
" शब्दार्थ - हंता - हाँ, तुम प्यासे हो, इमं - यह, विमलं - निर्मल, सीयलं - शीतल जल, पिय - पीओ, त्ति - कहकर, णरयपाला - वे नरकपाल-परमाधामी देव, घेत्तूण - उसे पकड़कर, तबियं - तपा हुआ, तउयं - सीसा या रांगा, कलसेण - कलश से, से - उसकी, अंजलीसु- अंजलि में, दितिडाल देते हैं, तं - उसे, दट्ठण - देखकर, पवेवियंगोवंगा - नारकों के अंगोपांग कम्पित हो जाते हैं, अंसुपगलंतपप्पुयच्छा.- आंसुओं से आँखें भरकर वे कहते हैं, छिण्णा तण्हाइयम्ह - हमारी प्यास छिन्ननष्ट हो गई है. इस प्रकार. कलणाणि-करुणापर्ण वचन. जंपमाणा- बोलते हए. दिसोदिसिं- भागने के लिए दिशाओं को, विप्रेक्खंता - देखते हुए, अत्ताणा - त्राण रंहित, असरणा - शरण रहित, अणाहाअनाथ, अबंधवा - बान्धव रहित, बंधुविप्पहूणा - बन्धुओं से वंचित, भयुब्विग्गा - भय से उद्विग्न होकर, मियाइव - मृग के समान, वेगेण - जोर से, विपलायंति - भागते हैं।
. भावार्थ - 'तुम्हें प्यास लगी है, तो लो यह स्वच्छ शीतल जल पीओ' - यों कहकर वे नरकपाल उस नैरयिक को पकड़ कर उबलता हुआ सीसा, कलश भरकर उसके हाथ की अंजलि में डालते हैं। उस 'उबलते हुए सीसे को देखकर वे नारक भयभीत होकर कम्पित होते हैं-धूजते हैं। उनकी आँखें आंसुओं से छलछलाती हैं। वे करुणापूर्ण स्वर से कहते हैं-'अब हमारी प्यास मिट गई है। आप रहने दीजिये'इस प्रकार कहते हुए वे बचाव का स्थान देखते हुए इधर-उधर भागते हैं। वे अरक्षित, निराश्रित, अनाथ, अबान्धव, भ्रातृ-विहीन नारक भयाक्रांत होकर भयभीत मृग के समान जोर से भागते हैं।
विवेचन - पाप का कितना भयंकर परिणाम होता है - इसकी कुछ झाँकी सूत्रकार ने उपरोक्त शब्द-चित्र में प्रदर्शित की है। यह कोई अतिरंजित बात नहीं है। असहाय प्राणियों पर किये अत्याचार का परिणाम समय आने पर भोगना ही पड़ता है। ऐसे भयंकर परिणाम को जानकर हिंसा से विरत होने के उद्देश्य से परम उपकारी सूत्रकार महाराज ने नरक के दुःखों का वर्णन किया है। ___अंसुपगलंतप्पुयच्छा - उनकी आँखों में आँसू भर आते हैं। ये शब्द उनके दुःख की तीव्रता व्यक्त करने के लिए दिए हैं। वैसे आंसू का सम्बन्ध औदारिक शरीर से है।
घेत्तूणबला पलायमाणाणं णिरणुकंपा मुहं विहाडेत्तुं लोहदंडेहिं कलकलं ण्हं वयणंसि छुभंति केइ जमकाइया हसंता। तेण दड्डा संतो रसंति य भीमाई विस्सराइं रूवंति य कलुणगाइं पारेयवगा व एवं पलविय-विलाव-कलुण-कंदियबहुरुण्णरुइयसद्दो परिदेवियरुद्धबद्ध य णारयार-वसंकुलो णीसिट्ठो। रसिय-भणियकुविय-उक्कूइय-णिरयपाल तजियं गिण्हक्कम पहर छिंद भिंद उप्पाडेह उक्खणाहि
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