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नरकपालों द्वारा दिये जाने वाले घोर दुःख
वाहिपीलिओऽहं किं दाणिऽसि ? एवं दारुणो णिद्दय मा देहि मे पहारे उस्सासेयं मुहुत्तं मे देहि पसायं करेह मा रुस वीसमामि गेविज्जं मुयह मे मरामि गाढं तण्हाइओ अहं देह पाणीयं ।
महाभाग,
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शब्दार्थ - किं ते- वे नारक जीव किस प्रकार चिल्लाते हैं ?, अभिवाय हे अज्ञात स्वरूप वाले ,सामि स्वामी, भाय- भ्राता, बप्प पिता, ताय तात, जियवं विजेता, मे मुय - मुझे छोड़ दो, मे मरामि मैं मर रहा हूँ, दुब्बलो मैं दुर्बल हूँ, वाहिपीलिओऽहं- मैं व्याधि से पीड़ित हूँ, किं दाणिं- क्यों आप इस समय, एवं इस प्रकार दारुणो दारुण, णिद्दय निर्दय, असिं - हो रहे हैं, मा देहि मे पहारे- मुझ पर प्रहार मत करो, मुहुत्तं मे उस्सासेयं मुझे मुहूर्तभर श्वास लेने दीजिये, पसायं करेहि- कृपा कीजिये, मा रुस - मुझ पर रोष मत कीजिए, विसमामि मुझे विश्राम लेने दीजिये, मे विज्जं मेरी गर्दन, मुयह छोड़ द्वीजिये, मरामि मैं मर रहा हूँ, अहं प्यास से अत्यन्त पीड़ित हूँ, देह पाणीयं- पानी दीजिये ।
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मैं, गाढं तण्हाइओ -
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भावार्थ - प्रश्न - वे नारक जीव किस प्रकार चिल्लाते हैं ? उत्तर - वे कहते हैं-‘“हैं महाभाग ! हे स्वामी! हे भ्रात! हे पिता ! हे पालक ! हे विजेता ! अरे, मुझे छोड़ दो! मैं अत्यन्त दुर्बल हूँ। अरे, मैं मर रहा हूँ। मैं भयंकर व्याधि से पीड़ित हूँ । आप मुझ दुःखी पर इतने क्रुद्ध क्यों हो गए हैं ? अरे आप मुझ पर दया क्यों नहीं करते ? क्यों निर्दय बन रहे हैं? अरे, मुझे मत मारो। मुझ पर कृपा करो। थोड़ी देर के लिए मुझे विश्राम करने दो। थोड़ी देर शान्ति से श्वास लेने दो। मुझ पर क्रोध मत करो। मेरी गर्दन छोड़ दो। मुझे अत्यन्त प्यास लग रही है। मैं मर रहा हूँ । मुझे पानी दो ।"
विवेचन - पूर्व सूत्रांश में 'भीया सद्दं करेंति' - से बताया है कि वे नारक जीव करुण दशा में पड़े हुए यमकायिक (परमाधामी) देवों से भयभीत होकर शब्द करते-चिल्लाते हैं। वे क्या चिल्लाते हैं, अपनी करुण पुकार में वे कौन-से भाव व्यक्त करते हैं ? यह प्रस्तुत सूत्रांश में स्पष्ट बताया गया है।
जीव हँस-हँस कर जो पापकर्म करता है, उसका परिणाम कितना दुःखद, दुःसह एवं भयानक होता है, यह उपरोक्त शब्दों से स्पष्ट हो रहा है।
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उत्कट प्यास से पीड़ित उन नारक जीवों के पानी मांगने पर वे परमाधामी देव क्या करते हैं, यह आगे सूत्रांश में बताया जाता है। -
नरकपालों द्वारा दिये जाने वाले घोर दुःख
हंता पिय इमं जलं विमलं सीयलं त्ति घेत्तूण य णरयपाला तबियं तउयं से
● 'ताहे तं पिय-पाठ भेद ।
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