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६० सुग्गीव-भामंडलसमागमपव्वं एयन्तरम्मि पउमो, केसरिजुत्तं रह समारूढो । लच्छीहरो वि एवं, हणुमाइभडेहि परिकिण्णो ॥ १॥ संपत्तो रणभूमी. पढमं चिय लक्खणो गरुडकेऊ । दट्ठ ण तं पलाणा, भुयङ्गपासा दसदिसासु ॥ २॥ अह ते खेयरसामी, भीमोरगबन्धणाउ परिमुक्का । भामण्डल-सुग्गीवा, निययबलं आगया सिग्धं ॥ ३ ॥ तत्तो ते पवरभडा, सिरिविक्खाया भणन्ति पउमाभं । सामिय ! परमविभूई, कह तुज्झ खणेण उप्पन्ना? ॥ ४ ॥ तो भणइ पउमनाहो, परिहिण्डन्तेण साहवो दिट्ठा । देसकुलभूसणा ते, गिरिसिहरे जायउवसग्गा ॥ ५ ॥ चउकाणणं तु पडिमं, साहन्ताणं समत्थचित्ताणं । भवतिमिरनासणयरं, केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ ६ ॥ गरुडाहिवेण तइया, तुडेणं अम्ह नो वरो दिन्नो। सो चिन्तियमेत्तेणं. विजाण समागमो जाओ ॥ ७ ॥ एवं राबभणियं, सोऊणं खेयरा सविम्हइया । मुणिवरकहाणुरत्ता, नाया हरिसाइयसरीरा ॥ ८ ॥
न तं पिया नेव करेन्ति बन्धू, न चेव मित्ता सकलत्त-भिच्चा ।
जहा मणुस्सस्स हिओवएस, कुणन्ति साहू विमलप्पहावा ॥ ९ ॥ ॥ इय पउमचरिए सुग्गीवभामण्डलसमागमं नाम सट्ठिमं पव्वं समत्तं ।।
६१. सत्तिसंपायपव्वं
अन्ने रणपरिहत्था, सूरा सन्नद्धबद्धतोणीरा । वाणरभडाण समुहा, समुट्ठिया रक्खसा बहवे ॥ १ ॥ पडपडह-भेरि-झल्लरि-काहल-तलिमा-मुइङ्गसद्देणं । फुडियं पिव आयासं, दो अद्धे महियलं व गयं ॥ २॥
६०. सुग्रीव एवं भामण्डलका समागम तब सिंह जुते हुए रथ पर राम सवार हुए। हनुमान आदि सुभटोंसे घिरा हुआ लक्ष्मण भी इसी तरह रथ पर सवार हुआ। (१) गरुड़केतु लक्ष्मण पहले ही रणभूमिमें पहुँच गया। उसे देखकर नागपाश दसों दिशाओंमें भाग गये (२) भयंकर नागपाशसे मुक्त वे विद्याधरराजा भामण्डल और सुग्रीव शीघ्र ही अपने सैन्यमें आ पहुँचे । (३) तब श्रीविख्यात आदि प्रवर सुभटोंने रामसे पूछा कि, हे स्वामी ! क्षणभरमें आपमें परमविभूति कैसे उत्पन्न हुई ? (४) तब रामने कहा कि घूमते हुए हमने एक पर्वतके शिखर पर जिनको उपसर्ग हुए हैं ऐसे देशभूषण और कुलभूषण नामके दो साधु देखे थे। (५) चतुरानन प्रतिमा (ध्यानका एक प्रकार) की साधना करते हुए समर्थ चित्तवाले उन्हें संसारका अंधकार दूर करने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। (६) उस समय गरुडाधिपने प्रसन्न हो हमें जो वर दिया था उसका चिन्तनमात्र करनेसे विद्याओंका समागम हुआ है। (७) इस प्रकार रामके द्वारा कही गई बात सुनकर विस्मययुक्त और मुनिवरोंकी कथामें अनुरक्त वे खेचर रोमांचित हुए। (5) निर्मल प्रभाववाले साधु मनुष्यके कल्याणका जैसा उपदेश देते हैं वैसा तो न माता, न पिता, न भाई, न मित्र और न स्त्री सहित भृत्य ही देते हैं। (९)
॥ पद्मचरितमें सुग्रीव एवं भामण्डलका समागम नामक साठवाँ पर्व समाप्त हुआ।
६१. शक्ति-सम्पात दूसरे बहुतसे युद्धदक्ष शूरवीर राक्षस कवच धारण करके तथा तरकश बाँधकर वानर-सुभटोंके सम्मुख उपस्थित हुए । (१) ढोल, नगारे, झालर, काहल (बड़ा ढोल), तलिमा ( वाद्य विशेष ) तथा मृदंगकी तुमुल ध्वनिसे मानो आकाश
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