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४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
मुनि श्री के मंगल उपदेश में अनुपम जादू था । एक बार व्याख्यान सुनने के बाद दूसरी बार श्रोता अपने आप चले आते थे । एक दिन श्रीमान् चम्पालालजी चौरड़िया बोले - “कस्तूरचन्द ! क्या कारण है कि तुम गुरुदेव के व्याख्यान में नहीं आते हो ? क्या तुम मन्दिरमार्गी हो इसलिए ? मेरी बात मानकर एक बार तो व्याख्यान में अवश्य चलो । मेरा विश्वास है वाणी श्रवण कर तुम्हारा मन हर्ष-विभोर हुए बिना नहीं रहेगा ।
वैराग्य का उद्भव
श्री कस्तूरचन्द जी मित्र की बात मानकर व्याख्यान श्रवणार्थं स्थानक में उपस्थित हुए। काफी आनन्द आया, अब बिना कहे नियमित रूप से आप आने लगे । एक दिन श्री खूबचन्द जी महाराज ने "नत्थि कालस्स अणागमो' अर्थात् प्रतिपल काल का आक्रमण चालू है । इस विषय पर सचोट उपदेश फरमाया । बस इस उपदेश का निमित्त मिलते ही कस्तूरचन्द जी के अन्तर्मानस में वैराग्य के अंकुर पल्लवित हो उठे । अहो ! गुरुदेव ने आज ठीक ही कहा है- " काल का कोई विश्वास नहीं है ।" मेरे देखते-देखते क्रूर काल ने मेरे परिवार के आठ सदस्यों का अपहरण कर लिया । जिनका न कोई पता है और न उनकी पहुँच है । वास्तव में कालरूपी पिशाच पर विजय तभी सम्भव हो सकती है जब मैं संयम को ग्रहण करू ।
मन ही मन ध्रुव निश्चय करके एक दिन सेवा में उपस्थित होकर बोले"पूज्यवर ! कुछ वर्षों से मेरे परिवार का झुकाव मंदिरमार्गी सम्प्रदाय की ओर रहा है । किन्तु आपकी असरकारक वाणी ने मेरे अन्तर्मानस को जगा दिया है । मेरी भावना हुजूर के चरणकमल में दीक्षित बनने की है । आप मुझे अपना शिष्य बनावें, यह हुजूर की बहुत बड़ी कृपा होगी ।"
प्रत्युत्तर में महाराज श्री ने फरमाया - "देवानुप्रिय ! संयम के प्रति तुम्हारी रुचि जगी है, तुम स्व-पर कल्याणार्थ संयमी मार्ग की ओर आगे बढ़ना चाहते हो । यह बहुत खुशी की बात है। शुभ विचारों से प्रदीप्त यह दीपक उत्तरोत्तर ज्योतिर्मान हो । हम सन्तों का काम भी वैरागी मुमुक्षुओं को आगे बढ़ाने का है । पर दीक्षा के लिए पारिवारिक अनुमति की अपेक्षा है। आज्ञा प्राप्त हुए बिना हम किसी भी स्थिति में दीक्षा नहीं दे सकते हैं ।"
कस्तूरचन्द — “भगवन्त ! आज्ञा का प्रश्न कैसे हल होगा ? मेरे बड़े भाई केशरी मलजी प्रकृति के बड़े विचित्र हैं । व्यसनों में उलझे हुए हैं । वे धर्म के नाम से चिढ़ते हैं । वे दीक्षा क्या जानें ? फिर लिखकर कैसे देंगे ?"
"देवानुप्रिय ! कोई भी कार्य असम्भव नहीं है । प्रयत्नशील बने रहो, एक दिन अवश्य सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी ।"
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