Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
रैदास की दृष्टि में राम के अतिरिक्त शेष सब कुछ असहज है। वे एकमात्र राम को सार वस्तु तथा सहज मानते हैं।'
सन्तों के निर्गुण ब्रह्म के सम्बन्ध में डा. राजदेवसिंह का यह कथन भी माननीय है - "सन्तों के निर्गण राम को शंकर अद्वैत के निर्गुण ब्रह्म का समशील मानना ठीक नहीं है। ऐसा मानकर जब भी सन्तों के ब्रह्म निरूपण की परीक्षा की गई तो उसमें भयंकर असंगतियों दिखाई पड़ती है। आचार्य शंकर के निर्गुण बह्म को सामने रखकर देखने से लगता है कि कबीरदास कभी तो अवंतवाद की ओर झकते दिखाई देते हैं और कभी एकेश्वरवाद की ओर, कभी वे पौराणिक सगुणभाव से भगवान को पुकारते हैं और कभी निर्गुणभाव से, असल में उनका कोई स्थिर तात्त्विक सिद्धान्त नहीं था।" 2
सन्तों के अनुसार इस अनिर्वचनीय तत्त्व की अपने अन्तस्तल में प्राप्ति के लिए कुण्डलिनी शक्ति के जागरण की आवश्यकता पड़ती है। योग विज्ञान के अनुसार हमारे मेरुदण्ड में विभिन्न ग्रन्थियों के रूप में नीचे से ऊपर तक छह चक्र पाये जाते हैं। वे क्रमश: मूलाधार, स्वामिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशद्ध और आज हैं। इनका रूप भिन्न-भिन्न संख्यो के दलों वाले कमल के पुष्पों की भाँति है। सर्वोपरि मस्तिष्क स्थित सहलार चक्र (सहस्त्रदल) कमल है। मूलाधार चक्र के नीचे सर्पिणीस्वरूपा कण्डलिनी शक्ति का निवास है। प्राणायाम की साधना से वह शक्ति प्रबुद्ध होकर क्रमश: विभिन्न चक्रों को पार कर सहस्त्रार चक्र में जाकर लीन हो जाती है हमारी समस्त शक्तियाँ केन्द्रित होकर एक दिव्य ज्योति के आनन्द में मग्न हो जाती है। यही ब्रह्म साक्षात्कार है। कबीर ने कहा है - "प्राणायाम द्वारा पवन को उलटकर षट्चक्रों को बेधते हुए सुषुम्ना को भर दिया जिस कारण सूर्य और चन्द्र का संयोग होते ही सद्गुरु के कथनानुसार ब्रह्माग्नि प्रज्वलित हो गयी और सारी कामनाएँ, वासनाएँ, अहंकार भस्म हो गए। जब सूर्य और चन्द्रमा का संयोग कर दिया तब अनाहत शब्द होने लगा और जब अनाहत बजने लगा, तब स्वामी के साथ विराजने लगा। जब चिन्ता निश्चिल हो गयी तब रामरसायन पीने को मिल गया और जब रामरसायन पिया तब काल का अन्त हो गया, अमरत्व की प्राप्ति हो गई।' 1. रैदासबानी, पद 21 पृष्ठ 11 2. सन्तों की सहज साधना-डॉ.राजदेव सिंह पृष्ठ 174 3. कबीर गन्यावली के पद,(अर्थ) उत्तरी भारत की संत परम्परा श्री परशुरुम चतुर्वेदी
से उदत पृष्ठ 203 4.भक्तिकाव्य में रहस्यवाद हों.रामनारायण पाण्डेय पृष्ठ 221, 22 तथा भारतीय संस्कृति और
साधना म.म. गोपीनाथ कविराज पृष्ठ 330