Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
15
एक समालोचरः ६. अध्यक्ष
(घ) कहिवे को सोभा नहीं, देख्या ही परवान । (क) अविगत अकल अनुपम देख्या कहता कहया न जाई।
सैन करै मन रहसै, गूगे जानि मिठाई ॥ अविगत की गति क्या कहूँ ,जसकर गांव न नाव ।
गुन विहुन का पेखिए, काकर परिये नांव॥ कबीर ग्रन्थावली के उपर्युक्त सभी उद्धरणों से वह परमतत्त्व निर्गुण, निराकार, अनुपम, अनिर्वचनीय प्रकट होता है, अन्य पदों में वह सगुण तथा विराट रूप में भी कथित है, जहाँ कबीर उसे सृष्टिकर्ता, कुम्भकार की तरह भी कहते है वहाँ बह्या कोटि महादेव, कोटि सूर्य चन्द्र आदि उसकी शोभा बढ़ाते हैं परन्तु अन्तत: वह तत्त्व निरपेक्ष एवं अनिर्वचनीय ही है । सन्तों ने जिस त्रिगुणातीत निर्गुण निराकार परमब्रह्म को स्वीकार किया है, उसी का नाम "राम" है। वह "राम" दशरथ का पत्र नहीं है । कबीर व अन्य सन्तों के अनुसार दशरथ के बेटे "राम" का बखान करने वाला राम नाम से असली मर्म से परिचित नहीं
देशरथ सुत तिहुँलोक बखाना। राम नाम को परम है आना ।।
सन्तों के मत से इस अविगत की गति लक्ष नहीं की जा सकती। चारों वेद, सम्पूर्ण स्मृतियाँ और पुराण व नौ व्याकरण कोई उस निर्गुण ब्रह्म का मर्म नहीं समझ सका -
निर्गुन राम जपहुँ रे भाई। अविगत की गति लखी न जाई॥
नारिं वेद और सुमित पुराणा। नौ व्याकरानां मरम न जाना ।। उस राम का कोई रूप नहीं है, रंग तथा देह नहीं है वह तो निरंजन है -
"रूप वरण वाके कछु नाही, सहजो रंग न देह ।
उसका कोई नाम निशान नहीं है। भूख-प्यास का गुण उसमें नहीं है। वह घट-घट में समाया हुआ है पर उसका मर्म कोई नहीं जानता। वह समस्त वेद और भेद से विवर्जित है, पाप और पुण्य से अतीत है, ज्ञान और ध्यान का अविषय है, स्थूल और सूक्ष्म से परे है, भेष और भीख से बाहर है -
राम के नाई नीसान वागा, ताका परम न जाने कोई।
मूख त्रिखा गुण वाकै नाहि घट घट अंतरि सोई॥ 1. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पद 153 2. सन्सबानी संग्रह पृष्ठ 15