Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक। बल के साथ पश्चिमीय चालुक्योंका सामना किया और अंतमें उनको दवाकर अपना प्रभुत्त्व पश्चिमीय दक्षिणमें सन् ई० ७५०से ९५० तक दृढ़तासे स्थापित रक्खा । - इस समयके पीछे पश्चिमीय चालुक्योंने फिर उन्नति की और अपना पद सन् ई० ११८९ तक जमाए रक्खा । पश्चात् उनको उनहींके आधीन राजाओंने अंतमें दबादिया। एक तो देवगिरिके यादववंशी राजा थे, दूसरे होयसालवंशी राजा थे जिनकी राज्यधानी मेसुरके दोर समुद्र या वर्तमान हालेविड़ स्थानपर थी।
इसी समय दक्षिण व पूर्वयें तंबोरके चोल राना बहुत तेजीके साथ अपनी हद्द बढ़ा रहे थे । सन् ९९९ तक उन्होंने पूर्वीय चालुक्योंके सर्व समुद्रतट प्रदेशोंपर विजय करके अधिकार करलियाउन्होंने पल्लव और पांडवों दोनोंको दबा लिया, पल्लवोंके राज्यको अपने में मिलालिया और पांडवोंको अपने वश कर लिया परन्तु पश्चिमकी तरफ चौलोंको होयसाल राजाओंने बढ़ने से रोक दिया। १२वीं शताब्दीके अंतमें उत्तरकी ओर उनके राज्यको वरंगलके गणपति रानाओंने लेलिया।
इस तरह तेरहवीं शताब्दीके अंतमें दक्षिण भारतमें तीन श्रेष्ठ वंश राज्य करते थे अर्थात् होयसाल, चौल और पांडव ।
१४ वीं शताब्दीमें मुसल्मान लोग आगए ।
पुरातत्त्व और चित्रकला-ऐतिहासिक समयके बाहरके पदार्थ मिट्टीके वर्तन और शस्त्र मिलते हैं । ऐतिहासिक समयके स्मारक लेख, मंदिर और किले हैं ( देखो R ports of A. Survey of India, south Iudian inscriptoins and