Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक।
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यहांक मुख्य स्थान । (१) चेयूरनगर-ता० मदुरा उतकम । मदरास शहरसे १३ मील । यहां तीन मंदिरोंमें चोलवंशके मूल्यवान शिलालेख हैं।
(२) कंजीवरम् नगर (प्राचीन कांची)-ता० कंजीवरम् । मदरास शहरसे दक्षिण पश्चिम ४५ मील । सन् १९०१ में यहां जनसंख्या ४६१६४ थी उनमेंसे नैनी ११८ थे। यह बहुत प्राचीन नगर है । प्राचीनकालमें पल्लवोंकी राज्यधानी थी। हुइनसांग चीनयात्रीने सातवीं शताब्दीमें इसे देखा था। इसके समयमें यह नगर ६ मोलके घेरमें था । यहांकी प्रजा वीरता, धर्म, न्यायप्रियता और विद्यामें श्रेष्ठ थी । जैनोंकी बहुत अधिक संख्या थी। बौद्ध और ब्राह्मणोंका एकसा बल था (People were superior in bravery and piety, love of justice and learniog. Jains were numerous in his days).
सं० नोट-इस वर्णनको पढ़कर विदित होता है कि चीन यात्रीके समय कांचीमें आदर्श जैन गृहस्थ निवास करते थे। यहांके स्थलपुराणसे प्रगट है कि यह नगर बहुत कालतक बौद्धोंके फिर जैनियोंके हाथमें रहा । यहां ईसाके पूर्वकी सभ्यता झलकती है। वास्तवमें एक समय इस देशमें जैनियोंका बड़ा प्रभुत्व था। चालुक्यबंशी पुलकेशी प्रथम, जिसकी राजधानी कल्याण थी, का लेख कहता है कि इसने चोल राजाको जीतकर कांजीवरम सन् ४८९ में प्राप्त किया। इसने बौद्धोंको कष्ट दिया।
सन् १९२२-२३ की एपिग्राफी रिपोर्टमें वर्णित है कि कांचीके कुछ पल्लव राजा, कुछ पांड्य राना, पश्चिमी चालुक्य राजा,