Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [२३१ श्रीवर्द्धमानकी मूर्तिपर लेख नं० ३३८ है कि इसको पंडिताचार्यकी शिप्या व सतयी श्राविकाने स्थापित किया। इस मंदिरमें एक लेख नं० ३४२ (१३४) है कि इस वस्तीका जीर्णोद्धार सन् १ ४ १२में जिससप्पाके हीरिय अप्पाके शिष्य गुम्मटन्नाने कराया था।
(७) जैन मठ-इसमें तीन वेदिया हैं । बहुतसी मूर्तियां, सन् १८५० से १८५८ तककी हैं । मठकी भीतोंपर चित्रकारी है । मध्यकी कोठरीकी दाहनी तरफ मैमूर महाराज कृष्णराज ओडयर तृ० के दशहरा दरबारका चित्र है । यह बात प्रसिद्ध है' कि इस मठके स्वामी चामुंडरायके गुरुश्री नेमिचंद्र सि० च० थे तथा उनके पहले भी बहुत गुरुओंकी श्रेणी होगई है । इस मठके एक गुरु चारुकीर्ति पंडित थे। उनके सम्बन्धमें लेख नं० २५४ (१०५) सन् १३९८ व नं० २५८ (१०८) सन् १४३२ कहता है कि उन्होंने होयसाल राजा बल्लाल प्रथम (११००-११०६) को भयानक रोगसे अच्छा किया था। महाराजने उनको बल्लाल जीवरक्षककी उपाधि दी थी।
. यहां बहुतसे जैन गृहस्थोंके घरोंमें मुर्तियां हैं । दौर्बलि शास्त्रीके घरमें भी हैं।
कल्याणी-सरोवर जो ग्रामके मध्य में हैं इसके उत्तर तटपर बड़ा खभोंदार मंडप है उसके एक खंभेपर लेख नं० ३६५ है वह कहता है कि इस सरोवरको मैसूरके चिक्कदेवराजेन्द्रने बनवाया था जिन्होंने सन् १६७२से १७०४ तक राज्य किया। अनंतकविकृत गोमटेश्वर चरित्रसे प्रगट है कि चिक्कदेवराजने अपने सिक्के बनानेके विभागके मंत्री अन्नप्पाकी प्रार्थनापर शुरू किया था। परन्तु उनका