Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 274
________________ २४० ] प्राचीन जैन स्मारक । ताम्रपत्र सन् ९६३ भी कहते हैं कि जब कृष्ण तृ० ने अश्वपतिके विजय करनेको उत्तरपर चढ़ाई की तब इसने मारसिंहको गंगवाडीका अधिपति बनाया । इसीके पीछे प्रसिद्ध राजा राजमल्ल द्वि० • हुए हैं । इन ही के मंत्री और सेनापति प्रसिद्ध चामुंडराय थे (चरित्र राजा चामुण्डराय) जिसने श्री गोमटेश्वरकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा विधि कराई । नं० २८१ (१०९) लेख चामुण्डरायके गुणोंका वर्णन करता है । यह ब्रह्म क्षत्रिय कुलका था। महाराज इंद्रकी आज्ञासे व अपने ही स्वामी जगदेक वीर राजमल्लकी आज्ञासे इसने सेनाको लेकर पातालमल्लके छोटे भाई वज्वलदेवको विजय किया । नोलम्ब राजा और राजा रवसिंहसे युद्धकर उसकी सेनाको भगाया । इसके स्वामी जगदेकवीर राजमल्लने इसकी बहुत प्रशंसा की है । महाराज चलदंक गंगने गंगराज्य बलात्कार छीनना चाहा था उनकी चेष्टाको इसने रद किया । इसने राचय्या शत्रुको मार डाला । इसने नीचे लिखे पद जिन २ कारणोंसे पाए उनका कथन इस प्रकार है (१) समर धुरंधर - जब चामुण्डने वज्वलदेवको हराया । (२) वीर मांड - कालम्ब युद्ध में सफल हुआ । (३) रण राजसिंह - उच्छंगोंके किलेमें इसने राजादित्य के साथ वीरता से युद्ध किया । (४) वैरी कुलकालदंड - जब इसने वागपुर के किलेमें त्रिभुवनवीर को मारा था । (५) भुज मार्तंड - राजा कामके किलेमें इसने युद्धकर डांब राजा, वास, सीवर और कुनकादिको हराया ।

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