Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 347
________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [ ३१३ (४३) नं० १४९ सन् १९२९, उडरी ग्राम । जब उद्दरेमें एकलरस राज्य करते थे तब श्रीहरिनंदिदेव मुनिके शिष्य दंडनायक सिंगणने जो बोप्पन दण्डनायकका पुत्र था, समाधिमरण किया । (४४) नं० १५२ सन् १३८० उड़ी में । हरिहरराय के राज्य में वैचय्या श्रावकने कोंकण देश में युद्ध में विजय प्राप्त की तथा अन्तमें समाधिमरण किया । (४५) नं० १५३ सन् १४०० के करीब उड़री । मुनि मुनिचन्द्रके शिष्य वेचय्याने जो साहु श्रीयन्नाका पुत्र था, समाधिमरण किया । (४६) नं० १५५ सन् १९०६ के करीब ? ग्राम उड़री पंडित गुरुके शिष्य मलगौड़के पुत्र प्रसिद्ध मोरशांकने समाधिमरण किया । (४७) नं० १९६ सन् १३७९, ग्राम तेवनंदी, किलेके जैन मंदिर के दक्षिण | हरिहररायके राज्य में, तवनिधि चौमनगौड़ने समाधिमरण किया | (४८) नं० १९८ सन् १२९९ वही ग्राम । क्राणुरगणके माधवचन्द्रदेव शिष्य दंडेश माधवने रामचन्द्ररायके राज्यमें जैन मंदिर बनवाया तथा समाधिमरण किया । (४९) नं० १९९ सन् १३९२, वही ग्राम । वीर बुक्कराजाके राज्य में बलात्कारगण सिंहनंद्याचार्यकी शिष्या तवनिधिर्ब्रह्मकी भार्या लक्ष्मी वोम्मकने समाधिमरण किया । (५०) नं० २०० सन् १३७८ वहीं । हरिहररायके राज्यमें श्री रामचंद्र मलधारीदेवकी शिप्या अलव महाप्रभु तवनिधि वोघम

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