Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 366
________________ ३३२ ] प्राचीन जैन स्मारक | अक्षरों में संस्कृतका लेख है जिससे प्रगट है कि साहित्यके गाढ़ प्रेमी महाराज सवदेवने शिल्पशास्त्र के अनुसार प्रतिमा बनवाकर प्रतिष्ठा कराई । स्थान अज्ञात है । शायद मैसूर या दक्षिण कनड़ासे सन् १८९९ में यहां लाई गई । ६- श्रीशांतिनाथकी मूर्ति ४ || फुट ऊंची तीन छत्र प्रभामंडल सहित | आसन में कनड़ी में लेख है कि यह मूर्ति श्री शांतिनाथजीकी है । यह येरग जिनालय में स्थापित थी जिस मंदिरको श्री मूलसंद कुंदकुंदान्वय, कारगण तित्रिणिगच्छके महामंडलाचार्य सकलभद्र भट्टारक के शिष्य श्रावक महाप्रधान वृहदेवनने बनवाया । स्थान अज्ञात है, शायद मैसूर या दक्षिण कनड़ासे सन् १८५९ के पहले लाई गई। ७ - श्रीपाश्र्वनाथकी कायोत्सर्ग मूर्ति सात फण चमरेन्द्र सहित । यह कृष्ण पाषाणकी ३२|| फुट ऊंची है । ८ - श्रीमहावीरस्वामीकी कायोत्सरी मूर्ति प्रभामंडल सहित जिसमें २४ तीर्थकर बैठे आसन अंकित हैं । ९- श्रीमहावीरस्वामीकी बेटे आसन मूर्ति || फुट उंची छत्रादि सहित । १० - श्री अजितनाथकी वैठे आसन मृर्ति तीन छत्र व चमरेन्द्र सहित २ फुट ऊंची । इसका शिल्प बहुत ही सुन्दर है इसकी मूर्ति बेलारी जिलेके पेड्डातुम्बलम ग्रामसे लाई गई । ११ - श्रीमहावीरस्वामी की मूर्ति छत्रादि सहित २ फुट, ऊपर के स्थान से लाई गई । १२ - श्री पुष्पदंतकी मूर्ति छत्रादि सहित कुछ खंडित २ || फुट ऊंची, उत्तर अर्कटके कीलनर्म ग्रामसे लाई गई ।

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