Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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३३०] प्राचीन जैन स्मारक । सेवामें ग्राम वदनेग्रप्प, तलवन नगरके श्री विनय जिनमंदिरके लिये दान किया। यह राना सन् ३८८ में अकालवर्षका मंत्री था | कुंद० देशीग में गुणचंद्र भ० थे। उनके शिष्य अभयनंदी भ० थे, उनके शिष्य शीलभद्र भ० थे, उनके शिष्य गुणनंदी भ० थे, उनके शिष्य वदनंदी भ. थे।
(२) शिलालेख विलिथरमें सन् ८८७ ई० । सत्यवाक्य कोंगनीवर्मा धर्म महाराजाधिराज ककलालपुर और नंदगिरिक रानाने, परमानदीके राज्यारुढ़के १४वें वर्ष में पेन्नेकोडंगके सत्यवाक्य जिनमंदिरके लिये शिवनंद सिद्धांत भट्टारकके शिष्य सर्वनदीदेवकी सेवामें पेज्जेर नदीके तटपर विलियूरके १२ ग्राम दान किये। ___ (३) शिलालेख फेग्गर स्थानपर सन् ९७७ या ८९९ शाका । राना सत्यवाक्य कोंगनीवर्माने श्रवणबेलगोलाके वीरसेन सिद्धांतदेवके शिप्य गुणसेन पंडित भट्टारकके शिष्य अनंतवीर्यकी सेवामें पेग्गेडिरा ग्राम भेट किया।
(४) शिलालेख अननगिरि पर सन् १९४४. यह लेख संस्कृत और कनड़ी दोनोंमें है।
श्रीशांतिनाथाय नमः निर्विघ्नमस्तु शुभमस्तु । श्रीमत्परमगंभीरस्याहादामोघलक्षणम् । जीयात त्रैलोक्यनाथस्य शासनम् जिनशासनम् । स्वस्तिश्री मूलसंघ देशीगण पुस्तकगच्छ कुन्दकुन्दान्वय जय गुलेश्वरवरेय श्रीमद बेलगुल सुरपुरवराधीश्वर गुमट्ट जिनेश्वरनाद पद्ममत्तमधुकरायमान राद तात्काल धर्मप्रवर्तक राद धर्माचायर विरुदावली येन्तेनुओ....इत्यादि । भावार्थ यह है कि बल्लालरायके जीवनरक्षक श्रीमत् चारुकीर्ति पंडितदेवके शिष्यके

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