Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त । [ ३३१ शिष्य श्रीमत् अभिनवचारुकीर्ति पंडितदेव थे । इनके सहपाठी श्रीमत् शांतकीर्तिदेव थे । इन्होंने शाका १४६६ में कार्तिक सुदी १५ को नीचेका लेख लिखाया
अभिनव चारुकीर्ति पंडितदेवने अंजनगिरि पर्वतकी शांति - नाथस्वामीकी वस्तीके दर्शन किये तब उन्होंने एक लकड़ीकी वस्ती बनवाकर श्रीशांतिनाथ और अनंतनाथको मूर्तिको जो उन्होंने सुवर्णवती नदी से पाई थी वहां बिराजमान किया जिनकी प्रतिष्ठा उनके भाई कोणसन गुड्डा शांतोपाध्यायने की तथा पाषाणके मंदिर के बनाने का उपदेश दिया । नीचे पाषाणके कामके खर्चका वर्णन है ।
मदरास शहरका अवशेष वर्णन ।
मदरास अजायबघर में जो जैन प्राचीन स्मारक हैं उनका विवरण नीचे प्रकार है---
१ - जैनशासनका पापाण जिसके ऊपर श्रीतीर्थंकर की मूर्ति है व नीचे आधे भाग में जैनाचार्य और उनके शिष्यकी मूर्तियें अंकित हैं। २ - श्रीमहावीर भगवानकी बेटे आसन मूर्ति तीन छत्र व चमरेन्द्र सहित | २||| फुट ऊंची है ।
३ - एक जैन तीर्थंकरकी ४ फुट ऊंची जो टिन्नेवेली जिले के ट्यूटीकोरिन से स १८७८ में लाई गई थी ।
४ - श्री तीर्थंकर पार्श्वनाथजीकी वैटे आसन मूर्ति छत्र व देवसहित । २|| फुट ऊंची जो गोदावरी जिलेसे सन् १९२० में लाई गई । ५ - श्रीशांतिनाथ भगवानकी बहुत ही सुन्दर कायोत्सर्ग मूर्ति, २||| फुट ऊंची । पाषाण कृष्ण चमकीला । इसमें कनड़ी