Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
प्राचीन जैन स्मारक |
३१४ ]
arat भार्याने समाधिमरण किया ।
(११) नं० २०१ सन् १३७९ वहीं । माधवचंद्र मलधारी देवके शिष्य वोम्मनने समाधिमरण किया ।
(५२) नं० २३३ सन् १९३९, उड़री ग्राम, वनशंकरी मंदिर के पूर्व - चालुक्यवंशी त्रैलोक्यमल्लके आधीन गंगवंशी एकलके राज्यमें राजा एकलने कनक जिनालयके लिये सब बिबलू में भूमि दान की तथा एरयंगकी माता, एकलके भाई राजा मारसिंहकी कन्या चत्तियव्वरसीने, जिसका चाचा बोधदंडेश था, दान किया । मूलसंघ काणूरगण तिंत्रिकगच्छके रामचंद्र व्रतपतिकी पूजा करके ।
(५३) नं० २६० सन् १३६७ कुप्पतुरु ग्राम, जैनवस्तीके पास । श्रुतमुनिके शिष्य चल्लचंद्र इनके शिष्य आदिदेवने जैन मंदिरकी रक्षा की ।
(५४) नं० २६१ सन् १४०८, वही ग्राम । जैन वस्तीके उत्तर पश्चिम एक पाषाणपर कर्णपटकके देवराजके राज्य में, बांधनपुर के स्वामी गोपीसा के पुत्र श्रीपति उसके पुत्र गोपीपतिने जैन मंदिर बनवाया । यह मूलसंघ देशीगण सिद्धांतचंद्रका शिष्य था । इसकी स्त्रियोंने- गोपासी और पदमासीने समाधिमरण किया ।
(१५) नं० २६२ सन् १०७७, वही ग्राम - कादम्बवंशी राजा कीर्तिदेव के राज्य में । महाराजाकी रानी माललदेवीने जो मूलसंघ कारगण तिन्त्रिक गच्छके पद्मनंदि सिद्धांतदेवकी शिष्या थी कुप्पतूर में श्रीपार्श्वनाथ चैत्यालयका जीर्णोद्धार किया व भूमि दी । (५६) नं० २६४ सन् १३९३ | वही ग्राम- गोपगौड़ ने समाधिमरण किया |