Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 357
________________ मदरास व मैमूर प्रान्त | [ ३२३ पके स्तंभपर । त्रैलोक्य मल्लदेवके राज्य में उनके आधीन त्रैलोक्यमल्ल वीर सांतारदेव पोम्बूर्च्छा में राज्य करते थे । राजाने नोकियके नामका जैन मंदिर बनवाया । इसकी स्त्री चागलदेवीने वसतीके सामने मृकरतोरण व वलिंग में चागेश्वर नामका जिनमंदिर बनवाया । (८१) नं० ४८ सन् १०६० | पद्मावती मंदिरके द्वारपर । उग्रवंश वीर सांतार राजाने नोकियव्ये मंदिरके लिये दान किया । ( ८२ ) नं० ४९ सन् १२३५ । ऊपर के मंदिरके हाने में पोम्वृच्छक माच गावन्दने समाधिमरण किया । ((३) नं० ५० सन् १२६७ीं। सोमय पुत्रने समाधिमरण किया । ((४) नं० ५१ सन १३२८ वहीं | होम्बुच्छा के पावलाने समाधिमरण किया । (८५) नं० ५३ सन १९२६१ वहीं मूलसंघ बालचंद्रदेवको शिष्या श्राविका सोपीदेवीने समाधिमरण किया । ((६) नं० १४ सन् १९२० ? वहीं स्मारक गुनिचन्द्र मलारीदेव शिष्य अभयचंद्र मुवी देशीगण । (८७) नं० ५५ सन् १९६८ ? यहीं । धनीनजकयके पुत्र रामश्रेष्ठी व ब्रह्मश्रेष्ठीने पहला मंडप बनवाया । (८८) नं० १६ सन् १९४८ वहीं महामंडलेश्वर ब्रह्मभूपाके मंत्री ब्रह्मप्पा सेनवावे के पुत्र पार्थसेन वायेने समाधिमरण किया । ((९) नं० ५७ सन् १०७७ करीब । सेलवस्ती के सामने मानस्तम्भपर । वीर सांतारके राज्य में दिवाकरनंदि सिद्धांतदेव के शिष्य पट्ट

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