Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [३२१ सालुवदेव रानाकी सभामें महान विजय पाई (४) विलिगेके राजा नरसिंहकी सभामें जैनधर्मका माहात्म्य प्रगट किया। (५) कारकलनगरके शासक भैरव राजाकी सभामें जैनधर्मका प्रभाव विस्तारा (६) राजा कृष्णरायकी सभामें विनयी हुए (७) कोपन व अन्य तीर्थोपर महान उत्सव कराए । (८) श्रवणबेलगोलाके श्रीगोम्मटस्वामी के चरणोंके निकट अपने अमृतकी वर्षाके समान योगाभ्यासका सिद्धांत मुनियोंको प्रगट किया। (९) जिरसप्पामें प्रसिद्ध हुए। (१०) आज्ञानुसार श्रीवरदेव राजाने कल्याण पूजा कराई । (११) मंगी राजा और पद्मपुत्र कृष्णदेवसे पूज्य थे। आगे इन मुनि महाराजको वंशावली दी है
भद्रबाहु अलकेको, विशापाचाये, तत्वार्थसूत्र की उमाम्यामी । मुनीश्वर जो श्रुतकेवलो समान थे, सिद्धांतकीर्ति जिनकी पूजा मिनदत्तरायने की । महर्दि अकलंकदेव जिन्होंने श्रीसमन्तभद्रके देवा गम स्तोत्रपर भाप्य लिया, स्वामी विद्यानंदि जिन्होंने अष्टमहत्री और श्लोकवार्तिक लिखे, माणिक्यनंदि जो जिनराजबाणी के कती थे, प्रभाचन्द्र जो न्यायकुमुदचन्द्रोदय के कती थे । श्रीपूज्यपाद (नोट-यहां भी अक्रय ही नाम है जिन्होंने शाकटायन व्याकरण और पाणिनी व्याकरणपर न्याप्त बनाया, जैनेन्द्र व्याकरण व शब्दावतार वद्यशास्त्र व तत्वार्थसूत्रपर टोका (सर्वार्थसिद्धि) रची, वर्द्धमान मुनींद्र जो होसाल वंशके गुरु थे, वासपूज्य व्रती जो वल्लालदेवसे पूजित थे, पात्रकेशरी, नेमिचन्द्र सिद्धान्त सार्वभौम त्रैलोकसारादिके कती व चामुण्डरायसे पूनित माधवचंद्र, अभयचन्द्र जिन्होंने वेशवार्य से प्रण कराया, जयकीर्तिदेव, निनच