Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 354
________________ ३२० ] प्राचीन जैन स्मारक । (७२) नं० ३८ सन् १०७७ मानस्तम्भपर वहीं । राजा व आचार्यकी प्रशंसा । (७३) नं० ४० सन् १०७७ मानस्तंभपर । चत्तलदेवीने कमलभद्र पंडितदेव के चरण धोकर भूमि दी पंचकूट जिन मंदिरके लिये तथा विक्रम सांतारदेवने अजितसेन पंडितदेव के चरण धोकर भूमि दी । (७४) नं० ४१ सन् १९२० ? वहीं - जिनशासन महात्म्य । (७५) नं० ४२ सन् १०९८१ उसी हातेमें । मूलसंघ पुस्तक गच्छ लक्ष्मीसेन भ० तथा पार्श्वसेन भ० ने समाधिमरण किया । (७६) नं० ४३ सन् १९९६ ? वहीं । गुणसेन सि० देवके शिप्य याद गाडड़ने समाधिमरण किया । (७७) ४४ सन् १२५९, पार्श्वनाथ वस्ती के पूर्व नंदि अन्वय, पुष्पसेन न्याय और व्याकरण में सागरसम थे । इन्होंने और अकलंकदेवने समाधिमरण किया । I (७८) नं० ४५ सन् ९९० इसी वस्ती व द्वारके पश्चिम भीतपर तौल पुरुष सांतारकी स्त्री पालिपकने अपनी माताकी मृत्युपर एक पाषाणका जिनमंदिर बनवाया जो पालिपक्क वस्तीके नामसे प्रसिद्ध है व दान किया । (७९) नं० ४६ सन् १५३०, पद्मावती वस्तीके हाते में । इस लेख में श्री विद्यानंदि व्रतपतिकी प्रशंसा इस तरह लिखी है(१) नारायण पट्टन के राजा नंददेवकी सभा में नंदनमल्ल भट्टको जीता इससे विद्यानंदि पद पाया । (२) सातवेन्द्र राजा केशरीवर्मा की सभा में वाद जीता इससे वादी प्रसिद्ध हुए । ( ३ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373