Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 352
________________ ३१८] प्राचीन जैन स्मारक । भार्या सिरियादेवी, पुत्र रायसांतार हुए । भायों अकादेवी, पुत्र चिक्कवीरसांतार भार्या विजलदेवी, पुत्र अम्मनदेव भार्या होचलदेवी पुत्र तैलपदेव पुत्री वीरवरसी । तैलपदेव भार्या महादेवी केलयव्वरसी पुत्र वीरदेव, भार्या विरालमहादेवी, विजलदेवी, अचलदेवी वीर महादेवी (गंगवंशी)। वीर महादेवीके पुत्र गोग्गिग व ज्येष्ठ पुत्र तैलपदेव भुजबलसांतार या नन्निसांतार थे । इनकी माता चत्रल या वीर महादेवीने पंचकूट जिन मंदिर (पंच वस्ती) बनवाया । नन्निसांतार और चत्रलदेवीके गुरु ओड़ेयदेव या श्रीविजय भट्टारक नंदिगण अरुंगलान्वय, तियानगुडीके नीदुम्बर तीर्थवासी थे । गुरुकी आज्ञासे पंचवस्तीकी नींव रक्खी गई । / आचार्यकी वंशावली दी है-* श्री कुन्दकुन्दाचार्य भूमिसे ४ इंच ऊपर चलते थे। भद्रबाहुस्वामी, समन्तभद्र, उनके शिप्य शिवकोटि आचार्य, वर्दताचार्य, आर्यदेव, तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता, सिंहनंद्याचार्य, गंगवंशके स्थापक । एकसंधि सुमति भट्टारक, वजनंद्याचार्य, पूज्यपादस्वामी, श्रीपाल भ०, अभिनन्दनाचार्य, कवि परमेष्ठीस्वामी, त्रैवेद्यदेव, अनन्तवीर्य भ० जिसने श्री अकलंकसूत्रपर वृत्ति लिखी, कुमारसेनदेव, मौनीदेव, विमलचन्द्र भ०, कनकसेन भ०, यह राना राचमल्लके गुरु थे। दयापाल मुनि जिन्होंने शब्दानुशासनकी प्रक्रियामें रूपसिद्धि लिखी, पुप्पसेन सिद्धांतदेव, वादिरानदेव, जो षटतर्कसन्मुख व जगदेक मल्लवादी कहलाते थे, श्रीविनय या पंडित परिजात यही राक्षस गंग परमानदी, चत्तलदेवी, वीरदेव नन्निसांतारके गुरु थे । पंच ** यह वंशावली क्रमवार नहीं मालूस होती ।

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