Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
मदरास व मैमूर प्रान्त । [३१५ (५७) नं० ३२९ सन् १४१५ ग्राम भारंग, कल्लेश्वर मंदिरमें। पंडिताचार्य श्रुतमुनिके शिप्य नगरखंडके राजा गोपगौड़के पुत्र बल्लगौड़ने समाधिमरण किया।
(५८) नं० ३३० सन् १४६५ वहीं-गोपीपतिके पुत्र नगरखंडके राजा बुलप्पाने जो मूलसंघ, नंदिसंघ देगण, पुस्तकगच्छके अभयचंद्रका शिप्य था, समाधिमरण किया।
(५९) नं० ३३१ सन १६५६ वहीं-प्रभुवल्लप और मल्लत्वेकी कन्या भागीरथीने समाधिमरण किया ।
(६०) नं० ३४५ सन् ११७ १, तेवतेप्पा ग्राम । वीरभद्र मंदिरके सामने । कादम्बकुली, मंडलीक भैरव, सत्यपताका सोवीदेव नगरखण्डका रक्षक था तब तेवतप्पाका स्वामी वोप्प गौड़ था उसके पुत्र लोकगावन्दने जैन मंदिर बनवाया और मू० कातिगच्छके भानुकीर्ति सिं०देवके चरण धोकर भूमि दान की।
तालुको सागर । ___(६१) नं० ५५ सन् १९६०, गोदईनगिरि । वेंकटामन मंदिरके सामने स्तम्भपर । क्षेमपुर नगरको जैरसप्पा कहते हैं-यहां राना देव महीपति था जिसने श्री गुम्मटाधीशका अभिषेक कराया था । इसके पीछे भैरव भूपति हुआ । उसकी बहनका लड़का देवराय था जो श्री राजगुरु पंडितदेवका शिष्य था। यह अपने छोटे भाई साल्प और भैरवेन्द्र के साथ तुलु, कोंकण आदिपर राज्य करता था तब अम्बुवनश्रेष्ठी और नागप्पाश्रेष्ठी दोनों भाई यहां आए । श्रीनेमिनाथ चैत्यालयके लिये मानस्तंभ बनवाया। इस मंदिरको उनके बाबा योजनश्रेणीने बनवाया था। उस समय मुनि अभिनव समन्तभद्र मौजूद थे।