Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 346
________________ ३१२ ] ११८१४२१ ११९१४१८ १२०१४२१ १२११३९६ १२२१२९९८ १२३१३४६१ १२४१२९५ १२५११४३ प्राचीन जैन स्मारक | देवराजा "" "" हवा ओवर कोटिनायक गमचन्द्र जगदेकमल | भदुक गौड़ गोपगोड भैरवगौड़ गमीगौडी सती श्री यमागौड़ी सती रामगड चकची गौड़ी सती दुन्दिय गोल्बल मुनिभद्र "" माघवचंद्र मलधागी गुणनंदी भट्टारक रामचंद्र मलधारी कतारसेन माणिक्यसेन पं०देव (३९) नं० १२७ सन् १९३१, ग्राम हुले सोराब । रामलिंग मंदिर के पास ( मूलसंघ सेनगण पोगारी गच्छ के चंद्रप्रभ सिद्धांतदेव के शिष्य माधवसेन भट्टारकदेवने समाधि ली । (४०) नं० १४० सन् १९९८, ग्राम उडरी, वाणसंकरि मंदिर के सामने । होयसाल वीर बहाल राज्यमें जिदुलिगेमें गंगकुल एकल राज्य करते थे उसका मंत्री पद्मनंदि मुनिके शिष्य रामनंदि यतिप उनके मुनिचन्द्र सिद्धांत चक्रेश उनके कुलभूषण व्रती नैविद्य विद्याधर, उनके सकलचंद्र भट्टारकका शिष्य श्रावक था । माघवचंद्रने एग जिनालय बनवाकर श्रीशांतिनाथ की मूर्ति स्थापित की व दान दिया | सकलचंद्र कारगण तिन त्रिणीगच्छके गुरु थे । (४१) नं० १४६ सन् १३८८ ग्राम उड़ी सरोवर तटपर । उद्धरवंश में श्रीवीरसेन, जिनसेन तथा लक्ष्मीसेन भ० हुए । उनके शिष्य चंद्रसेनसूरि, उनके मुनिभद्र देव हुए, इन्होंने हिसुगल जैन मंदिर को बनवाया व मूलगुंडके जिनमंदिर का जीर्णोद्धार कराया तथा विजयनगर के राजा हरिहर रायके समय में समाधिमरण किया । (४२) नं० १४८ सन् १९०४, उड़ी ग्राम । होयसाल वीर वल्लालदेव राज्यमें, उद्धरेके दंडनायक एक लियन्नाने समाधिमरण किया।

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