Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 342
________________ ३०८] प्राचीन जैन स्मारक | (२३) नं० २२२ से २२४ सन् ११०० वहीं । चक्रबंध श्लोक हैं । (२४) नं० २२५ सन् १२०४ वहीं शांतेश्वर वस्तीके सामने | जब विजय समुद्रमें होयसाल वल्लाल राज्य करते थे तब नगरखंडमें कादम्बवंशी सोमका पुत्र बोप्पदेवका पुत्र ब्रह्मभूपाल राज्य करते थे तब रेचचा भूपतिके पुत्र कवदे बोप्पने श्री शांतिनाथ मंदिर में मंडप बनवाया । यह तीर्थ कारगणके मुनिचंद्र सिद्धांतदेवके शिष्य ललितकीर्ति सिद्धांतीके शिप्य शुभचंद्र पंडित - देवके प्रबंध में था | इन्ही मुनिके चरण धोकर राजा वल्लालके प्रसिद्ध मंत्री महासेठी आदिने भी शांतिनाथजीके लिये दान किया । (२५) नं० २२६ सन् १२१३ उसी वस्तीके उत्तर और ऊपर कथित शुभचंद्र देवने सन्यास लिया | (२६) नं० २२७ सन १२०० ? उसी शांतिनाथ मंदिर के रंगमंडप दक्षिण पश्चिम स्तंभ पर अभयचंद सिद्धांतदेव के शिष्य चारुकीर्ति पंडित देवने हरिय महालिंगेकी पंचवस्तीका जीर्णोद्धार कराया व इनके व तलगुप्पेके मंदिरके लिये तीन ग्राम दिये । वविबागुरु, बविया हछी, व तगदुवडिंग | (२७) नं० २२८ से २३१ सन् ११००, ऊपर के मंडप के पूर्व, दक्षिण, उत्तर खंभोंपर । चक्रबंध लोक (२८) नं० २३२ सन १२०० के करीब । उसी मंदिरके हावेमें शुभचंद्र देवकी शिष्या सोमल देवीने समाधिमरण किया । (२९) नं० ३११ सन् ११०० के अनुमान | ग्राम संदा |

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