Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 343
________________ [ ३०९ मदरास व मैसूर प्रान्त | सरोवर के द्वारपर एक पाषाण । चालुक्य त्रिभुवनमल्ल के राज्यमें जब महासमन्ताधिपति अनन्तपाल गंगवाड़ी ६०० व बनवासी १२००० में राज्य करता था । यह रणरंग भैरव गोविंद रस कहलाता था । इसका पुत्र सोम भार्या सोमम्बिका, इनकी दो कन्या वीरम्बिका और उदयाम्बिकाने एक जैन मंदिर बनवाया । (३०) नं० ३१७ सन् १२०५ के अनुमान । गोग्ग ग्राम वीरभद्र मंदिर के द्वारके दोनों तरफ | मंत्री एचाना व मार्या सोवलदेवीने बेलगवत्ती नादमें जिसकी सदृशता कोई नहीं करसक्ता ऐसा सुन्दर जिनालय बनवाया । (३१) नं० ३२० सन् १२०० वहीं । महामंडलेश्वर मलिदेवरसके शांति व युद्ध के मंत्री एचा राजा थे उनकी मार्या सौवलदेवीने अपने छोटे भाई इचाकी मृत्यु होनेपर एक जिन मंदिर बनवाया व श्री शांतिनाथजीकी आठ प्रकारी पूजाके लिये श्री चंद्रप्रभाचार्य के चरण धोकर भूमि दान दी । (३२) नं० ३२१ सन् १२०७ करीब वहीं । श्रीवासपुज्य देवके चरण धोकर वीरुपय्याने भूमि दान की । होली ता (३३) नं० ५ सन् १९६० के करीब | ग्राम दिदगुरु । हम्मति देवकी गोशालाकी पीछली भीतके सहारे कायोत्सर्ग जैन मूर्तिके आसनपर | आचार्य बालचंद मूलसंघ काणुरगण मेष पाषाण गच्छकी इच्छानुसार हेगोड़ जक्कया, उसकी मार्या जकव्वेने दिदुगुरमें जिन -मंदिर बनवाया तथा सुपार्श्वनाथकी मूर्ति स्थापित की व भूमिदान की ।

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