Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 340
________________ -un- ~ - - ___३०६] प्राचीन जैन स्मारक । भावार्थ-नकाम्बिका देवीने मरते समय अपनी भावनाके अनुसार यह श्लोक बनाया है । इसमें कहती है कि मैंने मोहरहित होकर, व्रत गुण चारित्रकी श्रेणियोंके मार्गसे इस शरीरको छोड़ा और स्वर्गके दुर्गमें चढ़कर व इस स्वर्गमें अपने भननके बलसे व आत्माके प्रसादसे उत्तम देव होकर तथा समवशरण स्थित इंद्रोंसे नमन योग्य श्री जिनेंद्रके पास जाकर परम संतोषको प्राप्त किया है। (१५) नं० १९७ सन् १८८२ ? चिकमवाड़ीमें वासवन्न मंदिरके सामने । कादम्बवंशी राना बोधदेव था । भार्या श्रीदेवी पुत्र सोम जिसको कादम्बरुद्र सत्यपताका कहते थे, भार्या लच्छलदेवी पुत्र बोप्प-राज्यघानी बांधवपुर । संकर सामंतने श्रीशांतिनाथजीके लिये बहुत सुन्दर जैन मंदिर मागुदीमें बनवाया। वहां श्री नयकीर्ति गुरु थे जो मूलस० कुंद० कानोरगण तित्रिनिकच्छनन्न वंशके पद्मनंदिके मुनिचन्द्र उनके शिष्य भानुकोति सिद्धांतदेवके शिप्य थे। रेचनदंडाधीश्वर वोपराना और शंकरको लेकर मागुदीने आया और श्री जिनेन्द्रको पूना की और तलवे ग्राम दिया। (१६) नं० १९८ सन् १२५०, चिकनबाड़ी, जैन मंदिरके पास । भुजबलि प्रताप चक्रवर्ती कंदारदेवके ११ वें वर्षके राज्यमें मुडीनिवासी शांतादेवीने समाधिमरण किया। (१७) नं० १९९ वहीं । सन् १२५० के करीव बम्मोजा सुनारने समाधिमरण किया। (नोट-यह सुनार होकर जैनधर्मी था । (१८) नं० २०० सन् ११९० करीब वहीं। श्रीनयकीर्ति देवमुनिकी शिप्या व संकप नायक और मुद्दव्वेकी कन्या शांतलेने समाधिमरण किया ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373