Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 339
________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। [३०५ उससे मित्रता की। शाका ९९० में इसने कुरुवर्तिमें योग धारण किया तथा तुंगभद्रा नदीके तट स्वर्गधाम पधारा । तब इसका ज्येष्ठ पुत्र सोमेश्वर भुवनैकमल्ल राज्य करने लगा। इसका सेवक महामंडलेश्वर राजा लक्ष्मण नृप वनवासीमें शासन करते थे। इसका मंत्री शांतिनाथ दंडनायक था जो श्रेष्ठ जैनधर्मरूपी कमलका हंस था। इसके गुरु मूलसंघ दे० ग० कुन्द० वर्द्धमान व्रतपति थे। इसका पिता गोविन्द राजा था। शांतिनाथ कवि था। इसकी उपाधि सरस्वातिमुख-मुकुर थी। इसने सुकुमाल चरित्र रचा है । इसकी प्रार्थना करनेपर राना लक्ष्मण नृपने बलिग्राम, लकड़ीके जिन मंदिरको पाषाणका बनवाया व द्वारपर पापाणका मानस्तंभ स्थापित कराया। व लक्ष्मणने भूमि दान दी। (१३) नं० १४८ सन् ११८६ बेलग्रानी, काशीमठके द्वार पर। यादव चक्रवर्ती बीर बल्लालदेवके १६३ वर्षके राज्यमें पटनम्वामी मल्लीसेटीकी स्त्री पदमौवेने समाधिमरण किया। (१४) नं० १९६ सन् १२१२ चिकनगडी, वासबल मंदिरके एक स्तंभपर । यादव नारायण होयसाल बोरबल्लालदेवके २३ वें वर्षके राज्य में लच्छव्चे और मदन मुडती कन्या तथा प्रसिद्ध भरतकी स्त्री व श्रीअनंतकीर्ति मुनिएकी शिष्या नक्षवेने समाधिमरण किया । तब उसने संस्कृतमें एक श्लोक बनाया जो इसभांति हैत्यक्त्वा देह विमोहात अतगुणचरितप्रणिनिकोणिमार्गा। दारुम स्वर्गदुर्गम् निजभजनबलादेवयनराहीला।। याऽहम् जकाम्बिकाऽस्मिन् दिविदिविजयसे सूचनात्मणसादादित्यम् तुरावगत्वासमवसरण मूस्थम् नतेन्म मिनेन्द्रम् ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373