Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैमूर प्रान्त । [२६३ officers and high personages in common with ordinary people deemel it duty to visit the place at least once in their life are to have their names permanently recomi on the holy spoi."
भावार्थ-ये यात्रियोंके लेख कई कारणोंसे बहुत उपयोगी हैंप्रथम तो इनकी प्राचीनता है । ये इस बातके प्रमाण हैं कि बहुत प्राचीनकाल में भी यह स्थान पवित्र व उपयोगी माना जाता था क्योंकि प्रसिद्ध जैनाचार्य, कवि, शिल्पकार, सर, आफिसर व अन्य बड़े२ आदमियाने व साधारण लोगोंने भी यह समझ रक्खा था कि अपने जीवनमें कमसे कम एक दफे भी इस स्थानका दर्शन करना चाहिये और अपना नाम सदाके लिये इस पवित्र स्थलपर अकित कर देना चाहिये।
उत्तर भारतके ५३ लेख मारवाड़ी तथा हिन्दीमें हैं। इनमें ३६ नागरी लिपि व १७ महाजनीमें हैं । नागदाके सन् १४८ (से १८४१ तकके हैं। इनमें काष्ठासंघ, व माडिवत गच्छ काष्ठासंघ घेरवाल जाति, व स्थान पुरस्थान, माधवगढ़, व गुडघातिपुर लिखा है । महाजनी लिपिके सन् १७४३ से १७८६ तकके है ।इनका सम्बंध अग्रवालोंसे है । दिहलीवाले नरथानवाला, सहनवाला, गंगनिया पानी पतियो । गोत्र गोयल है । स्थान पेठ व मांडवगढ़ आदि हैं।
जैनाचार्योंको सूची लेखों में । इस तरहके १८ शिलालेख हैं। सबसे पुराना नं० ६२ सन् ९०० व नं० ६९ (५५) सन् ११००का है । यह कट्टले वस्तीके स्तम्भपर हैं । इसमें नीचे प्रकार वर्णन है
मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वयमें वक्रगच्छके धारक वट्ट देव हुए इसी वंशमें

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