Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 326
________________ २९२] प्राचीन जैन स्मारक । माता दत्तलवरुवंशके विनयदित्यकी बहन थी। यह मारकुंतल देशमें कोदम्ब नगरका शासक था। (१८) नं० ४७ सन् १९३० कोप्प ग्राम केल्लवस्तीमें। नब बोम्मलदेवीका पुत्र वीर भैररस कारकलमें राज्य करते थे, तब उसकी छोटी बहन अपने खास हकसे वेगमनी सिन्नेपर राज्य करती थी। इसने केल्लवस्तीके श्री पाश्र्धनाथके लिये दान किया। (१९) नं० ५० सन् १९९८, कोप्प ग्राम, पश्चिमकी ओर खाली भूमिमें । करिदलके मयिलानायक, आयर्या तलार दुग्गम्मा पुत्र पद्मनायक और देरेनायकने कोप्पमें साधन चैत्यालय बनवाकर श्री पार्श्वनाथको स्थापित किया । भैरस ओडियरने भूमि दी। पिंडयप्पा ओडियरने मुदकदानीर ग्राम दिया । संथार या संतास । . संथार राजाओंकी पहले राज्यधानी पट्टीपोरु बद्धपुर या हूमहमें नगर तामें थी। ये जैन थे। इनकी उत्पत्ति जिनदत्तरायसे है जो उग्रवंशमें उत्तरमपुराका राना था । जिनदत्तने बहुत प्रदेश दक्षिणने कलाल तक जीता व उत्तरमें गोवर्द्धनगिरि (सागर ता०) तक । पीछे इनकी राज्यधानी सिसिलपर वादमें कारकलमें हुई। दोनों दक्षिण कनड़ामें हैं। कला और कारकल । मैसूरमें घाटोंके ऊपर कलश व नीचे कारकल है। यहां शिलालेखोंसे प्रगट है कि सन् १२४६ से १५९८ तक महारा. नियोंका प्रधानत्व रहा है । जाल महादेवीने सन् १२४६ से १२४७ में व कलाल महादेवीने १२७० से १२८१ तक राज्य

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