Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
wnwror
मदरास व मैसूर प्रान्त। [२९७ जैन शिलालेख एपिग्रेफिका कर्णाटिका जिल्द ७ौं ।
ता० शिमोगा। (१) नं० ४ सन् ११२२, कल्लूर गुड्ड ग्राम । सिद्धेश्वर मंदिरके पास पाषाणपर
यह लेख गंग वंशके इतिहासका योतक है
अयोध्यामें श्री वृषभदेवके इक्ष्वाकुवंशमें महाराज हरिश्चंद्र हुए उनके पुत्र भरत थे, भायां विजय बहादेवी थी। जब यह गर्भस्था हुई तब इसने गंगामें स्नान करना चाहा। उसने स्नान किया। जब उसके पुत्र हुआ तब उसका नाम गंगदत्त रक्खा गया। उसका पुत्र परत द्वि०-फिर गंगदत्त द्वि०, फिर हरिश्चंद्र द्वि०, फिर भरत तृ० फिर गंगदत्त नृ• इस तरह गंगवंश चला आरहा था । जब हरिवंशमें श्रीनेमिनाथ तीर्थकर हुए तब गंगवंशमें राजा विष्णुगुप्त अहिछत्रने राज्य करते थे। जब श्री नेमिनाथनीका निर्वाण हुआ था तब इसने इन्द्रध्वजपूना की । इसकी स्त्री पृथ्वीमती थी, पुत्र भगदत्त और श्रीदत्त हुए ! भगदत्त कलिंग देशपर व श्रीदत्त यहां राज्य करता रहा। जब श्री पार्श्वनाथको केवलज्ञान हुआ, इस राजामे पूना की, इन्द्रने प्रसन्न हो पांच आभूषण श्रीदत्तको दिये तथा अहिछत्रपुरका नाम विजयपुर भी प्रसिद्ध हुआ।
पश्चात् बहु काल पीछे इस वंशमें राजा कम्प हुए । उनका पुत्र पद्मनाभि था, उनके पुत्र राम और लक्ष्मण हुए । उज्जैनीके राजा महीपालने उनको घेर लिया। पद्मनाभने मंत्रियोंसे सम्मति लेकर अपने दोनों पुत्रोंको छोटी बहनके साथ तथा ४८ चुने हुए ब्राह्मणोंके साथ परदेश भेज दिया। इन दोनों भाईयोंने अपने