Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त । [२९५ बौद्ध, विष्णु, शिव, ब्रह्माके । ध्वंश मंदिरों में खुदाईका काम बढ़िया है । इस स्थानको दक्षिणकेदार कहते हैं । यहां १३ वीं । शताब्दी पूर्व के ८ शिलालेख हैं । १२वीं शता०में इसको अनादि राज्यधानी कहते थे।
(४) गोवर्द्धनगिरि-ता० सागर । यह किलेवार पहाड़ी १७०० फुट ऊंची है । मूल किलेको ८ वीं शताब्दीमें जैन राना । जिनदत्तने बनवाया क्यों के यह उत्तर मथुरासे आया था। इसने . वहांसे गोवर्द्धनगिरिके समान इस पहाड़ीका नाम भी गोवढनगिरि रक्खा । एक जैन मंदिर है उसके सामने स्तंभ है जिसपर १६ वीं शताब्दीका लेख है । इसमें मंदिर स्थापक जेरसप्पाके व्यापारीका वर्णन है।
(५) हमछ-ता० नगर-यहांसे पूर्व १८ मील । पुराना नाम पोम्बूंछ था। जिनदत अपने साथ पद्मावतीदेवीकी मूर्ति लाए थे निसको यहां स्थापित किया। उसके किसी वंशनने ता. तीर्थहल्लीमें सांतलिगे प्रदेश प्राप्तकर लिया। इसलिये इस वंशके शासक सांतार कहलाने लगे। यहां बहुत बड़े२ जैन मंदिर हैं व ध्वंश स्थान हैं । जैन भट्टारकोंका मुख्य मठ है। मैसूर गजटियरमें लिखा है कि जिनदत्तका पिता सहकार था। उसके एक किरात स्त्रीसे पुत्र मारदत्त हुआ। पिता मारदत्तको राज्य देना चाहता था तब पिताने मारदत्तको किसी कामके वहाने बाहर भेजा। कारणवश मारदत्त जिनदत्तको मार्गमें मिल गया तब जिनदत्तने उसे शत्रु जान मारडाला और आप अपनी माताके साथ तथा पदमावतीकी सुवर्णमय मूर्ति लेकर भागा। उसके पिताकी सेनाओंने १५० मीलतक पीछा