Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 323
________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [ २८९. किया । मेघचंद्रके शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धांतदेव थे । उनके शिष्य जिनचंद्र थे, उनके शिष्य नयकीर्ति थे । ता० चिकमगलूर | (३) नं० २ सन् १२८०, चिकमगलूर में लालबागके पाषाणपर । चिकमगलूर के मसनगौड़ के ज्येष्ठ पुत्र सोमेगोड़ने समाधिमरण किया । यह देशी० ग० पुस्तक ग० हनसोगेवाली कुन्द० मूलसंघ श्रेयांस भट्टारकका शिष्य था, उसके पुत्र हेगड़े गौड़ ने यह स्मारक स्थापित किया और अष्ट प्रकारी पुजाके लिये भूमि दी । (४) नं० ७५ सन १०६० के करीब | कादवंती नदीपर | मेल कादवंती चट्टानपर-जब सेनवरस वंशके खचरकंदर्प सेनमार राज्य करते थे तब देशी ग० पाशानान्वयके अदेव भट्टारक के शिष्य महादेव भट्टारके शिष्य श्रावक निर्वद्यने भेलसाको चट्टानपर निर्वयजिनालय बनवाया । (५) नं० १६० सन् १९०३ - ग्राम सिंदीगेरी । ब्रह्मेश्वर मंदिर में जब चालुक्य त्रिभुवनमल राज्य करते थे, उनके आधीन होमशाल विनयदित्य द्वारावतीपुरका स्वामी था । उसकी भार्या hotoदेवीने अग्ने छोटे भाईके समान गरियने दंडनायकको पाला व उसे दावे व दिगेरीका राज्य शाका ९६९ में दिया । विनयदत्तका पुत्र वीर गंज एरयंग उसका पुत्र बल्लाल था जिसने पद्मलदेवी, चखलदेवी, वेप्पदेवीको विवाह । । शाका १०२५में - ये तीन मरियने दंडनायककी कन्याएं थीं । दिष्णुवर्द्धन के राज्यमें अर्हतके चरणसेवी जैनी महामंत्री मरियने दंडनायक और भौश्वर दंडनायक थे । मरियनेने बहुत से युद्ध विजय किये । १९.

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