Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैमूर प्रान्त। [२७७ एक खंभेपर लिंगका चिह्न कर दिया। इसको विजयप्पाने मिटा डाला । इसपर यह मामला देवष्टथ्वी महामात्य आदिके पास गया। हासनके पद्मप्पा सेठी आदि गए, उन महामात्ओंने यह तय किया कि पहले विभूति और विल्व महादेवको चढ़ाकर फिर विजयपार्श्वकी पूजा पहली रीतिसे करो । जो जैनधर्मका विरोध करेगा वह शिवका द्रोही समझा जायगा।
(१४) नं० १२९ ता० ११९२ ई० इसी वस्तीके द्वारके पास-वीर वल्लभदेवके राज्यमें श्री मुनि बालचंद्र वक्रगच्छी देशीगण मूलसंघीके समयमें व्यापारी कवदमप्पा और देवी सेठीने शांतिनाथ वस्तीके लिये गांव दान किया व इइगे नल्लरसप्पाके पुत्र अप्पया, गोयप्पा, वृचय्याने श्री मल्लिनाथजीके लिये मांडवी बालचंद सिद्धांतदेवके शिप्य रामचंददेवकी साक्षीसे द्रव्य दिया।
(१५) नं० १३१ सन् १२७४-इसी ग्राममें आदिनाथेश्वर वस्तीमें मुनि बालचंद पंडितदेव प्रसिद्ध तपस्वीने पल्यंकासन धार समाधिमरण किया । इन्होंने सारचतुष्टयपर टीकाएं लिखी। (शायद सारचतुष्टय, कुन्दकुन्दकत पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार व नियमसार हैं)व अन्य ग्रंथ रचे । इनके ग्रंथोंसे नेमिचंद्र पंडित देवने सुना । यह बालचन्द अभयेन्द्र योगीके पुत्र व माधनंददेव मूलसंघ दे० ग० पु० ग० इंग्लेश्वरवलीके प्रिय शिष्य थे तथा नेमचन्द्र सिद्धांतदेव इनके दीक्षागुरु व अभयचंद सि० देव इनके श्रुत गुरु थे । दोरे समुद्रके सब भव्योंने स्मारकमें अपने गुरुकी व पंचपरमेष्ठीकी मूर्तियें बनवाई। इस लेखमें संस्कृत श्लोकोंमें भी कथन है । कुछ श्लोक ये हैं