Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
२८६] प्राचीन जैन स्मारक । कुलांतककी भगिनी थी-महाराज जगदेकमल्ल गंगवंशके रत्न थे।
कोंगल्वंश-ओरदूरमें राज्य करते थे जो ट्रिचिनापलीके पास प्राचीन चोलोंकी राज्यधानी थी। ये जैनधर्मी थे। इनके राजाओंके नाम ये मालूम हुए हैं (१) वादिम (२) राजेन्द्र चोलएथ्वी महाराज सन १०२२ (३) राजेन्द्र चोल कोंगत्त १०२६ (४) राजेन्द्र पृथ्वी कोंगलदेवके अदतरादित्त्य १०६६-११०० (६) त्रिभुवनमल्ल चोल कोंगलदेव अदतरादित्य-११०० दर्शनीय शिल्पके जैन स्थान-श्रवणबेलगोलाके जिनमंदिरोंके सिवाय एक्कोटि जिनालय आरसीकेरी व जैन वस्ती, वस्तीहल्ली हेलविड़की देखनेयोग्य है।
-1300DER
(६) कादर जिला। यह शिमोगाके पास है-पूर्वमें चीतलदुग, दक्षिणमें हासन, पश्चिममें दक्षिण कनड़ा। यहां १९०१के पहले १३०८ जैनी थे। इतिहास-प्राचीनकालमें पश्चिम भाग कादम्बोंके व शेष गंगवंशके आधीन था । आठवीं शताब्दीके अनुमान सन्तारा राज्य शिभोगा जिलेके पोम्बूछे या हूमचमें स्थापित हुआ था। इन्होंने अपना राज्य इस निलेके दक्षिण कलसतक पीछे इनकी राज्यधानी सिसिलया सिसुगली हुई जो मुदगेरीमें घाटोंके नीचे है । पीछे उनकी राज्यधानी दक्षिणकनड़ाके कारकलमें होगई। इन्होंने चालुक्योंकी आधीनता स्वीकार की थी। ये पक्के जैनी थे जैसा लिखा है
At one time they acknowledged suprermacy of Chalukyas and were staunch (ains