Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 310
________________ २७६ ] प्राचीन जैन स्मारक । नाम शत्रुको वधकर उसका देश प्राप्त किया था तथा उसकी रानी लक्ष्मी महादेवीको पुत्रकी प्राप्ति हुई थी उसने उन पुजारियोंको वंदनाकी, गंधोदक और शेषाक्षत् मस्तकमें मगाए । महाराजने कहा कि क्योंकि इस भगवानकी प्रतिष्ठाके पुण्यसे मैंने विनय पाई व पुत्रका जन्म पाया इसलिये मैं उन भगवानको विजयपार्श्व नामसे पुकारूंगा तथा मैं अपने पुत्रका नाम विजय नरसिंहदेव रखता हूं। तथा मंदिरके जीर्णोद्धारादिके लिये आसन्दीमें जावगल ग्राम भेट किया। तेलके व्यापारी दास गौडने पुनारी शांतिदेवके नाम भूमि दी उस समय मूलसंधी नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिप्य नेमीचन्द्र पंडितदेवका शिप्य मंडल उपस्थित था । (१०) नं० १२५ ता० १२५४ ऊपरकी वस्तीके एक तरफ । होसालवीर नरसिंहदेवरसने बोधदेव दंडनायककी वस्तीके दर्शन किये और भगवान श्रीविजय पार्श्वनाथको भेटकी, इस शासनको पढ़ा । बोधदेवके साले पदमीदेवने मंदिरका घेरा व १ घर बनवाया था उसकी मरम्मत नरसिंह महाराजने कराई। (११) नं० १२६ ता० १२५५ वहीं । नरसिंहदेव रसने अपने उपनयन संस्कारके समय श्रीविजयपार्श्वकी सेवामें भेट की। (१२) नं० १२७ ता० १३०० ई०के करीब। इसी वस्तीके बाहरी भीतमें एक स्तम्भपर । यहांसे उत्तर पूर्व १५ हाथ शांतिनाथस्वामी ६ हाथ ऊंचे भूमिमें विरागित है। कोई निकालकर विराजमान करे। (१३) नं. १२८ ता० १६३८ ई० इसी वस्तीके अंगनमें विलपुरीके चेन्नवेंकटेश्वरके राज्यमें हुल्वाप्पादेवने विजयपार्श्व बसदीके

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