Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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२७४] प्राचीन जैन स्मारक। राज नरसिंह होसालदेवके राज्यमें भरत राजदंड नायकने श्रीपाल त्रैवेद्यदेवके शिष्य वासपूज्य सिद्धांतदेवके चरण धोकर भुंगालीमें भूमि दानकी व दीपके लिये आधा मनी तेल व नगरपर आनेवाली वस्तुपर एक वीसा कर लगा दिया ।
(६) नं० १३१ सन् १११७ ? वहीं-द्रामिलसंघ नंदिसंघ अरंगुलान्वयके पुप्पसेन सिद्धांतदेवके शिष्य वासपूज्यदेवने समाधिमरण किया ।
तालुका वेतुल । (७) नं० १७ सन् ११३६ पाषाण हेलविडसे लाकर वेलुरमें स्थापित किया गया । महाराज विष्णुवईनके राज्यमें विष्णु दंडाधिप महाप्रचंड, दंडनायक, सर्वाधिकारीने जो श्रीपाल त्रैवेद्यदेव वादी नरसिंहका शिप्य था यादवोंकी राज्यधानी दोर समुद्र में विष्णुवर्द्धन जिनालय बनवाया तब इम्मपी दंडनायक विट्टियनाने पूजाके लिये ग्राम विजुवोलाल व अन्य भूमि दी । उसके गुरुकी वंशावलीका सार यह है
समन्तभद्र, पात्रकेशरी द्रामिल संघाधीश, वक्रग्रीव, वजनंदी, सुमति भ०, अकलंक, चन्द्रकीर्ति भ०, कमप्रकृति, विमलचंद्राचार्य जो पल्लव रानाका गुरु था, परवादि मल्लदेव, कनकसेन वादिराजदेव, श्रीविनय भ० जो गंगकुल कमलबुटुक परमादीके गुरु थे, वादिराजेन्द्र जो राना जयसिंहदेवके गुरु थे, अनितसेनस्वामी, साथी कुमारसेन सैद्धांतिक जो वर्तमान काल में तीर्थनाथके समान थे, अनितसेनस्वामी, मल्लिषेण मलधारी जो गणधर समान थे, श्रीपाल वादीभसिंह ।
(८) नं० १२३ सन् ९५२ ई० हेलबिडमें वस्ती हल्लीमें लकनावीरन्ना मंदिरके पास एक स्तम्भपर । जब नन्नियगंज जय