Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक।
बनी है कि इसने शत्रुका मस्तक खडगसे काटा, पशुओंको बचाया, दूसरी तरफ यह भी चित्र है।
(३) नं० १३८ (६०) सन् ९४ ०के करीब । बाहुबलि वस्तीके पास । इसमें गंगराजकुमार गंगवज या राक्षणमणिका वर्णन है । यह लेख कहता है कि गंगवज और वहेग तथा कोनेयगंग व अन्योंसे युद्ध छिड़ गया । उस समय राज्यभक्त और वीर बोयिग भयानक युद्धमें मरा ।
(४) नं० १३९ (११) सन् ९५० के करीब । छोटे पर्वतपर बाहुबलि वस्तीके पास । इसमें एक वीर स्त्रीका वर्णन है । श्रीमती सवियब्बे सर्दार वायिककी कन्या व धोराके पुत्र लोक विद्याधर या उदय विद्याधरकी स्त्री थी। जब इसका पति युद्ध करनेके लिये गया तब यह भी पतिके साथ युद्धको गई और घोड़ेपर चढ़कर खडग ले युद्ध करने लगी। उसीमें इसका प्राणांत हुआ। लेखके ऊपर उसकी मूर्ति बनी है कि घोडेपर चढ़ी है, तलवार हाथमें है व उसके सामने एक आदमी हाथीपर है जो उसको शस्त्र माररहा है।
सं० नोट-इन लेखोंसे जैन श्राविका व श्रावकोंकी वीरताका अच्छा प्रमाण मिलता है।
(६) नं० १५० सन् ९५० ब्रह्मदेव वस्तीके द्वारकी दाहनी ओर-इसमें गंगवंशके ऐश्वर्यका अच्छा वर्णन है । राना एरंगंग या एरयप्पाका पुत्र नरसिंह था यह राज्यका महामंत्री था। इसके जमाईका पुत्र नागवर्मा था जो वस्तरान और भागदत्तके समान था उसने यहां समाधिमरण किया ।
(६) नं० ५९ (३८) सन् ९७४ कूगे ब्रह्मदेव स्तंभपर