Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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प्राचीन जैन स्मारक ।
ऐश्वर्यपर था उसका प्रचार श्रीमुनि शांतिसेनने किया । (४) नं० ६७ (५४) सन् ११२९ इसमें है कि मुनि चंद्रगुप्तकी सेवा बनके देवोंने की । (५) नं० ६४ (४०) सन् ११६३-इसमें भद्रबाहु श्रुतकेवली व उनके शिप्य मुनि चंद्रगुप्तका कथन है । (६) नं० २५८ (१०८) ता० १४३२ कथन है कि देवोंने श्रीभद्रबाहु और चंद्रगुप्तको नमन किया।
साहित्यमें (१) श्रीहरिषेणकृत बृहत् कथाकोष जो ९३१ सनमें रचा था इन दोनोंका वर्णन करता है।
(२) भद्रबाहु चरित्र अनंतकीर्तिके शिप्य रत्ननंदीकृत १५ वीं शताब्दीका भले प्रकार दोनोंका इतिहास बताता है ।
(३) चूड़ामणि कृत मुनिवंशाभ्युदय सन् १६८० यही बताते हैं।
___ (४) देवचंद्रकृत राजावली कथा ( सन् १८३८ ) में यही वर्णन है--- / Jainism and early faith of Asoka by Dr. Thomas नामकी पुस्कमे लिखा है “ Testimony of Alagasthene's would likewise seen to imply that Chandragupta submitted to devotional tenets of Sramans as opposed to doctrines of Brahmans." "Asoka was Jain at first. " " Successors of Chandragupta were Jains."
_यूनानी एलची मगस्थनीजको यह प्रमाण था कि चंद्रगुप्त ब्राह्मणोंकी शिक्षाके विरुद्ध श्रमणोंके सिद्धांतोंका भक्त था । अशोक पहले जैन था । चंद्रगुप्तके पीछेके राजा जैनी थे। अशोकके शिलाके लेखोंमें जैन मत प्रगट है । अबुल फजल आईने अकबरीमें कहते हैं कि अशोकने काश्मिरमें जैनधर्म स्थापित किया। राजतरंगि णीमें भी लिखा है कि अशोकने काश्मीरमें जिनशासनका प्रचार किया।