Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 289
________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। [२५५ श्री गोमट्टस्वामी और चतुर्विशति वस्तीके लिये बहुत दान दिये। नं. ३३४ (१२९) सन् १२८२ नगर जिनालय-कहता है कि नरसिंह तृ० के राज्यमें माघनंदि आचार्य मौजूद थे जो होयसालवंशके गुरु थे। यह मूलसंघ बलात्कार गणमें थे । यह शास्त्रसारके कर्ता व इनके गुरु कुमुदचंद्र थे। महामंडलाचार्य नेमिचंद्र पंडित मूलसंघने इंग्लेश्वर देशीकगणमें थे उनका शिष्य श्रावकचंद्र था इसने तथा बलात्कार गणके महामंडलाचार्य मावनंदीके शिष्य बेलगोलाके जौहरियोंने नगर जिनालयके लिये भूमियें दान की नं० २५४ (१०५) सन् १३९८ सिद्धर वस्ती व यहीं नं० २५८ (१०८) सन् १४३२ कहते हैं कि विष्णुवईनके बड़े भाई वल्लाल प्रथम (११००-११०६)को भयानक रोग हो गया था जिसको जैनाचार्य चारुकीर्तिने अच्छा कर दिया तब उसने आचार्यको “वल्लाल जीवरक्षक" की उपाधि दी। विजयनगरके राजाओंका उल्लेख । नं० ३४४ (१३६) भंडारवस्ती-बुक्कराय प्रथमके समयमें सन् १३.६ में जैन और वैष्णवमें झगड़ा हो गया थातब महाराजने फैसला दिया कि जैन धर्मियोंको पूर्वकी भांति ५ बाजोंका व कलशका अधिकार है । उनको भेदभावसे नहीं देखना चाहिये। नं० ३३७ मैयायी वस्ती कहता है कि देवराज माहारायाकी भार्या भीमादेवीने जो पंडिताचार्यकी शिष्य श्राविका थी सन् १४१० में मंगायी वस्तीमें शांतिनाथजीको स्थापित किया। नं० २५३ (८२) कहता है कि महाराज हरिहर द्वि० सेनापति इहगप्पाने सन् १४२२में श्री श्रुत मुनिके सामने श्री

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