Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर मान्त | [ २४९ की तब उसने गोविंदवाडी ग्राम पाया जिसे उसने श्री गोम्मटस्वामीकी पूजाके लिये दान किया । दोनों ग्रामोंके दान अपने गुरु श्री शुभचन्द्र सिद्धांतदेव के चरण धोकर किये गए थे । परमग्रामके दानको गंगराजके पुत्र एचीराजा सेनापतिने पुनः स्थिर किया । नं० १२७ (४७) एरद्र कट्टे वस्तीपर यह जैनाचार्य श्री मेघचंद्र त्रैविधदेव के सन् १९१५ में समाधिमरणके स्मारकका लेख है जिसको श्री मेघचंद्रके शिष्य प्रभाचंद्र सिद्धांतदेव के उपदेशसे गंगराजा और उसकी स्त्री लक्ष्मीदेवीने स्थापित किया ।
नं० ७४ (६६) ता० १११७ - शासनवस्ती के आदिनाथजीकी सिंहपीठ पर लिखता है कि गंगराजाने इंद्रकुल गृह या शासनवतीको बनवाया ।
लेख ७० (६४) कट्टलेवस्ती सन् १९१८ - गंगराजाने अपनी माता पोचव्वेके लिये मंदिर बनवाया ।
नं० १३० (५३) एर दुकट्टे वस्ती - लक्ष्मीदेवी शिष्या श्री शुभचंद्रने मंदिर बनवाया । इसमें लक्ष्मीदेवीको चेलनीका दृष्टांत दिया गया है।
* नं० १२९ (४९) एरदुकट्टेवस्ती - स्तंभ पर इसमें राज्य व्यापारी चामुण्डकी भार्या देमतीके समाधिमरणका कथन है जो सन् १९२०में हुआ तब यह गंगराजाकी स्त्री लक्ष्मीदेवीकी बहन थी । लक्ष्मीदेवीने स्मारक बनवाया । लेख नं० ११८ (४४) चामुण्डराय वस्ती कहता है कि गंगराजाकी माता पोचिकव्वेने बेलगोलापर जिनमंदिर बनवाये । अन्तमें सन् ११२० में समाधिमरण किया । इस स्मारकको प्रभाचन्द्र सि० देवके शिष्य श्रावक चावरा