Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [२५१ ____ एपिप्रैफिका कर्णाटिका जिल्द पांचवीमें वेलूरके लेख नं. १२४से हम मालूम करते हैं कि गंगराजाका मरण सन् ११३३में हुआ था तब उसके पुत्र बोप्पने हलेविंडमें श्री पार्श्वनाथ वस्ती बनवाई तथा उसका नाम अपने पिताके नामकी उपाधिसे द्रोह धरह जिनालय नाम रक्खा । बोप्पने कम्ब दहल्ली ता० नागमंगलममें शतीश्वर वस्ती भी बनवाई।
नं० १३२ (५६) गंधवरण वस्ती कहता है कि इस मंदिरको विष्णुबन महारानकी भार्या शांतलदेवीने सन् ११२३ में बनवाया । यह शांतलदेवी मारसिंह और माचिकव्वेकी कन्या थी। यह जैनधर्म, दृढ़ थी। यह गान और नृत्य विद्यामें बहुत चतुर थी।
Shc v. Cotert in singing and clancing.
नं० १३१ (६२) यहीं पर कहता है कि शांतल देवीने शांति निनक स्थापित किया व नं० १४३ (५३) कहता है कि शांतलदेवीने सन् ११३१ में शिवगंगा (बेंगलोरसे उत्तर पश्चिम ३० मील) पर स्वर्ग प्राप्त किया । उसकी माता माचिकव्वेने एक मासका उपवास करके अपने गुरु प्रभाचंद्र, वर्द्धमान और रविचंद्रके सन्मुख समाधिमरण किया ! नागवाकी स्त्री चंदिकव्वे थी उनका पुत्र बलदेव था. भार्या बीची कव्वे थी, उनका पुत्र परगेड़सिंगि मय्या था । यह शांतलकी माता माचिकव्वेका छोटा भाई था।
नं० १.१ (५१) गंधवरण वस्ती कहता है कि मदिनगिरि पवित्र स्थानपर माचिकव्वेके पिता बलदेवने ११३९ में समाधिमरण किया। यहां अपने गुरु प्रभाचन्द्रके आधीन एक पाठशाला व एक सरोवर स्थापित किया।