Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
मदरास व मैसूर प्रान्त ।
[२३७
संस्कृत नाटक मुद्राराक्षससे प्रगट है कि चन्द्रगुप्तके समय जैन लोग ऊंचे २ पदाधिकारी थे । उसके मंत्री चाणक्यनें एक जैनीको राज्यदूत नियत किया था। चंद्रगुप्त राज्यपर सन् ई० से ३२२ वर्ष पहले बैठा था तथा उसका राज्य सन् ई० से २९८ वर्ष पहले तक रहा जब उसकी आयु ५० वर्षकी थी फिर कहीं उसके मरणका कथन नहीं लिखा है । उसके पिछले जीवनका इतिहास न मिलना इस बात का सबूत है कि वह साधु होगए थे । श्री भद्रबाहुके स्वर्ग जाने के पीछे १२ वर्षतक मुनि चंद्रगुप्त जीवित रहे । उनका समाधिमरण ६२ वर्षकी आयुमें हुआ था । यह भी बात प्रमाणित है कि दक्षिण और उत्तर मैसूर में मौर्योका राज्य था | अशोकका शिलास्तंभ मास्की (निजाम स्टेट) व मैसूर के चीत - लग है यही इसका उचित प्रमाण है । प्राचीन तामील साहित्य में कथन है कि मौर्योने दक्षिण भारत में हमला किया था । शिलालेख नं० २२५ शिकारपुर (E. C. V.) कहता है कि कुन्तलदेश जिसमें पश्चिम दक्षिण व मैसूरका उत्तर भाग गर्भित है नंन्दोंके शासन में था ।
"
श्रवणबेलगोलाके लेखोंमें " गंगवंश का उल्लेख ।
(१) लेख नं ० ४१९ पार्श्वनाथ वस्तीके पास सन् ८ १० का यह सबसे पुराना गंगवंशी लेख है। इसमें राजा शिवमार द्वि०का वर्णन है ।
(२) नं० ३९४ सन् ८८४ - ग्राम कव्वलु अन्ना मंदिर के पास- सत्त्यवाक्य राचमल्ल परमानंदी द्वि० के राज्यमें महियर बुवइयाका पत्र वितिययत लड़ा और मरा । पाषाणपर दस वीरकी मर्ति