Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
मदरास व मैसूर मान्त। [७७ तकटामें थी, यवनिका द्वारा स्थापित यक्ष ब यक्षिणीकी मूर्तियोंका जीर्णोद्धार कराया और पर्वतपर स्थापित की तथा इस तिरुमलई पर्वतः पर जिसको अरहसुगिरि ( अरहंतोंका सुन्दर पर्वत ) कहते हैं एक पानीकी नहर बनवाई।
नं० ७६-गुफाके भीतरी हारपर-नं. ७५के समान ।
नं. ७७-गुफाके द्वारके भीतर-अम्बरके पुत्र करिया पेरुमलने पर्वतके सरोवर में पानी लानेको एक आड़ बनवाई।
नं० ७६का लेख संस्कृतमें हैं सो नीचे प्रमाण है--
"श्रीमत्केरलभूभृता यवनिका नाम्ना सुधर्मात्मना | तुंडीराहवय मंडलाह सुगिरौ यक्षेश्वरौ कल्पितौ। पश्चात्तत्कुलभूषणाधिकनृप श्री राजरानात्मजे व्यामुक्तश्रवणोज्वलेनतकटानाथेन जीर्णोद्धतौ”।
मदरास एपिग्राफी दफ्तरमें यहांके चित्रादि नीचे प्रकार हैं
(१) नं० सी १२-बाहरी परिक्रमा स्थापित एक मूर्ति, गुफाके नीचे कमरेमें एक खड़े हुए गोल पाषाणमें मूर्तियोंका संग्रह व पर्वतके पश्चिम सरोवरके निकट एक स्थापित मूर्तिके चित्र ।
(२) नं० सी १३-पश्चिम कोने में नीचेके खनमें जो धर्म देवस्थान मंदिर है उसके आलेमें जैन मूर्तियां ।
(१८) पोडवेडु-यह स्थान बहुत ही ऐतिहासिक है । यह सैकड़ों वर्ष राज्य करनेवाले बलवान वंश कुरुम्बोंका मुख्य नगर था। इसका घेरा १६ मीलमें था । यह मंदिरोंसे भरपुर था ।
___(१९) जवादी पहाड़िया-पोडवेडुके ऊपर-उत्तर अर्काटके दक्षिण पश्चिम ३००० फुट ऊंची चोटी है। यहां ऐसे चिह्न हैं जिससे प्रगट होता है कि बहुत प्राचीनकालमें यहां एक सभ्य जाति