Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदसताच मैसूर वान्त। [१११ मुक्तास्यमुनेवांच्या नतिर्ने गुणशादिनः ।
धर्मवृविध रेवत्याः सम्यक्स्वासक्तचेतसः ॥ ९ ॥ भावार्थ-मेषकूटपुरका राजा चंद्रप्रभ श्रीनिनतीर्थोकी यात्रा करता हुआ अपने पुण्योदयसे दक्षिण मथुरा (मदुरा) आया यह श्री.गुप्ताचार्य मुनिके पास धर्मकथा सुनकर एक विद्या परोपकारके लिये रखकर क्षुल्लक होगया। एक दफे तीर्थयात्राके लिये उत्तर मथुराकी तरफ जानेकी इच्छा करके गुरुसे पूछा कि दयानिधि कोई सन्देशा हो तो कहिये तब गुप्ताचार्य जीने उत्तर मथुराके सुब्रतमुनिको नमोऽस्तु व रेवती रानी सम्यग्दृष्टिनीको धर्मवृद्धि कहला भेनी ।
(४) तिरुवेदगम-ता० निलक्कोत्तई-मदुरासे उत्तर पश्चिम १२ मील । यहां कुब्ज पांड्य मदुराका राना जो जैन था वह रहता था। उसकी स्त्री शिवमतको माननेवाली थी। उसने अपने गुरु तिरुज्ञान सम्बन्धर द्वारा रानाका कर दूर कराया। इसने ऐसा उपदेश दिया जिससे रानाने जैनधर्म छोड़कर शिव धर्म धारण कर लिया और इसने जैनियों को बहुत कष्ट दिया ।
(५) ऐवरमलइ-ता० पालनी । यहांसे १६ मील दिन्दीगल स्टेशनसे मोटर पालनी जाती है । इसको लोग पंच पांडक्का आश्रम कहते हैं। यह पहाड़ी १४०० फुट ऊँची है। उत्तरकी तरफ एक गुफा १६ फुट लम्बी ब १३ फुट ऊँची है। यह निःसंदेह प्राचीनकालमें जैन मुनियोंके ध्यानका स्थान था । इस गुफाके ऊपर चट्टानपर ३० फुट लम्बी लाइनमें ६ कतारों में १६ जैन तीर्थकरोंकी मूर्तियां हैं। हरएक मूर्ति १॥ फुट ऊंची है। बहुताही बढ़िया जैन स्मारक हैं। कुछ मूर्तियां कायोत्सर्ग हैं व कुछ पत्यकासन हैं । कुछ