Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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१८६] प्राचीन जैन स्मारक । गुणनंद कर्मप्रकृति भट्टारकने ३१ दिनके उपवासका नियम कर सन्यास करके समाधिमरण किया।
(२) नं० ८३ ता० १११७ई० चामराजनगरमें श्रीपार्श्वनाथ वस्तीमें एक पाषाणपर । जब द्वारावती (हेडेविड)में वीरगंग विष्णुवर्द्धन विट्टिग होसालदेव राज्य करते थे तब उनके युद्ध और शांतिके महामंत्री चाव और अरसीकन्वेका पुत्र पुनीश राजदंडाधीश था। यह श्रीअजित मुनिपतिका शिष्य जैन श्रावक था तथा यह इतना मीर था कि इसने टोडको भयवान किया, कोगोंको भगाया, पल्लवोंका वध किया, मलयलोंका नाश किया, कालराजाको कंपायमान किया तथा नीलगिरिके ऊपर जाकर विनयकी पताका फहराई । इसने नीलाद्रिको पकड़ लिया तथा मलयलोंका पीछा करके उसकी सेनाको पकड़ लिया। केरलका स्वामी होकर केरलराजाको सेवक बनाया और फिर उसको सब कुछ दे दिया । इसने गंगवाड़ी ९६००० के मंदिरोंकी शोभा की तथा एन्ननादमें अरकौत्तर ग्रानमें त्रिकूलवस्ती नामका जिनमंदिर बनवाया व उसके लिये भूमि दान दी।
(३) नं. १४६० ग्राम मलियारुमें गुंडीन ब्रह्मदेवरुको जाते हुए मार्गपर पर्वतपर-इस लेखमें पुस्तकगच्छ देशीयगणके भट्टाकलंक मुनियकी प्रशंसा है।
(४) नं० १४७ सन् १५१८ ई० । ऊपरकी पहाड़ीपर वलिकल्लूके दक्षिण चट्टानपर संस्कृत भाषामें लेख है-- . शाकाब्दे व्योमपाथो निधिगति शशि संख्येश्वरे श्रवणे । )
तत्कृष्णे पक्षेत्र तद् द्वादशतिथि युत सत् काव्य वारे गुरोर्भे ॥