Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [१९१. बिराजमान कराई और उसका जीर्णोद्धार कराया और फिरसे रंग कराया।
(२१) नं० १९ ता० १२२९ ई० ऊपरकी जैन वस्तीमें जब हिरियनादमें महाराज नरसिंहदेव राज्य कर रहे थे तब कलगनाके शंकर....ने केलासुरकी वस्तीके लिये कुदुग बागमें भूमिदान की।
(२२) नं० २० ता० १०३० ई० इसी वस्तीकी जड़में चोल गंगदेवके राज्यमें विक्रम चोल परमादीने वस्तीके लिये गामुंड ग्राम दिया।
(२३) नं० २७ ता० ११९६ ई० गुन्डलुपेट किलेमें जैन यस्तीके एक पाषाणपर सम्यक्त चूड़ामणि होयसाल, वीर वल्लालदेव जब दोर समुद्रमें राज्य करते थे हरलाधिकलका स्वामी गोखगबुन्ड था उसका ज्येष्ठ पुत्र हरगोकुंड था। उसके पुत्र विहिगोकुंडने टुप्पूरमें एक जिनालय बनाया और जीर्णोद्धार व अष्टप्रकारी पूजाके लिये भदहल्ली ग्राम दिया । इसका सम्बन्ध दमिलसंघके नंदिसंघके अरंगुलान्वयसे है
(२४) नं० ९६, ग्राम रामवाडीमरी मंदिरके निकट एक पाषाणपर--धर्मेंद्र पद्मावती सहित श्रीचंद्रोग्र पार्श्वनाथको नमस्कार हो।
(२५) तालुका येदलोर नं० २१ जा० १०२५ ई० । चिकहोन्सागमें जैनवम्तीके द्वारक उपर देशीयगण पुस्तगच्छी श्रीराजेन्द्रचोलने जिनालय बनवाया। ____(२६) नं० २२ ता० १०६० ? वहीं उपरकी वस्तीमें पुस्तक.गच्छी श्रीवीरराजेन्द्र नन्नीचंगलदेवने वसती बनवाई।
(२७) नं० २३ ता० १०८० ? ऊपरकी जैन वस्तीके नवरंग मंडपके ऊपरी द्वारपर कुन्द० देशीगण पुस्तकग के दिवा