Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [२२१ (३) सन् १६७७में मैसूरमहाराज चिक्कदेवरान ओडयरके जैन मंत्री विशालाक्ष पंडितके व्ययसे अनन्त कविने किया।
(४) मैसूर महाराज कृष्णराज ओडयर तृतीयने शांतिराज पंडितद्वारा कराया सन् १८२० में।
(५) फिर इसी महाराजने कराया सन् १८२७में जैसा लेख नं० २२३ (९८) में है।
(६) सन् १८७१ में अभिषेक हुआ जैसा इंडियन ऐंटिक्वरी जिल्द दो प्रष्ट १२९ में है।
(७) सन १८८७में कोल्हापुरके भट्टारकने ३०००० खर्च कर कराया यह वात "Harvent field” of may 1887 में छपी है।
(८) सन् १९०९ में जैनियोंढारा हुआ । (९) सन् १९२५में ,, , ,,
नोट-कारकलमें जो बाहूबलिकी मूर्ति है वह ४ १ फुट ५ इंच ऊंची है जिसको पनसागेके जैन आचार्य ललितकीर्तिकी सम्मतिसे वीर डियरानाने सन् १४३२में स्थापितकी तथा एनूरमें वेलगोलाके चारुकीर्ति पट्टाचार्यकी सम्मतिसे चामुण्डके वंशज तिरुमराजने सन् १६०४ में स्थापित की यह ३५ फुट ऊंची है। सन् १६४६ में चंद्रभाने कनड़ीमें कोकलड गोमटेश्वर चरित्र बनाया है उसमें इसका वर्णन है । एक गोमटस्वामीकी मूर्ति २० फुट ऊंची मैसुर ता के इलिवलुके निकट श्रवणगुट्टपर है जिसको भुला दिया गया है । विध्यगिरिपर जो महान मूर्ति है उसकी बाईं तरफ एक गोल पाषाण सरोवर है जिसको ललित सरोवर कहते हैं। श्रीगोम्मटस्वामीके